श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का हिन्दी बाल -साहित्य एवं हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य” के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक विचारणीय व्यंग्य – “अथकथा में, हे कथाकार!”)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी का साहित्य # 201 ☆
☆ लघुकथा- तीर्थयात्रा ☆ श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ ☆
हरिद्वार जाने वाली गाड़ी दिल्ली पहुंची थी कि फोन घनघना उठा,” हेल्लो भैया !”
“हाँ हाँ ! क्या कहा ? भाभी की तबियत ख़राब ही गई. ज्यादा सीरियस है. आप चिंता न करें.” कहते हुए रमन फोन काट कर अपनी पत्नी की ओर मुड़ा, “ सीमा ! हमें अगले स्टेशन पर उतरना पड़ेगा.”
“क्यों जी ? हम तो तीर्थयात्रा पर जा रहे हैं. फिर वापस घर लौटना पड़ेगा ?” सीमा का वर्षों पूर्व संजौया सपना पूरा हो रहा था, “ कहते हैं कि तीर्थयात्रा बीच में नहीं छोड़ना चाहिए. अपशगुन होता है.”
“कॉमओन सीमा ! कहाँ पुराने अंधविश्वास ले कर बैठ गई,” सीमा के पति ने कहा, “ कहते हैं कि बड़ों की सेवा से बढ़ कर कोई तीर्थ नहीं होता हैं ”
यह सुन कर सीमा सपनों की दुनिया से बाहर आ गई और रेल के बर्थ पर बैठेबैठे बुजुर्ग दंपत्ति के हाथ यह देखसुन कर आशीर्वाद के लिए उठ गए.
© श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
२७/०२/२०१६
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