श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। आज से प्रत्यक शनिवार प्रस्तुत है यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा।)
यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-११ ☆ श्री सुरेश पटवा
हम्पी को कभी ‘मंदिरों का नगर’ (City of Temple) कहा जाता था, आज इसे ‘खंडहरों का शहर’ (City of Ruins) कहा जाता है। इसे 1986 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल (UNESCO World Heritage Sites) घोषित किया गया था। यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल इस स्थान को देखकर इसके अतीत के वैभव का अंदाजा लगाया जा सकता है।
भूगोल और इतिहास के गली-कूचों से होते हुए हम अब हम्पी की उस जगह पहुँच रहे हैं, जहाँ कभी रोमन साम्राज्य को टक्कर देते विजयनगर साम्राज्य की राजधानी के खंडहर एक लाख से अधिक मनुष्यों की चीत्कार के गवाह बने उस दुर्दांत कहानी को कहते खड़े हैं, जो क़हर इन पर 1565 में जनवरी से मई तक आततायियों ने यहाँ बरपाया था। एडवर्ड गिब्बन ने “राइज़ एंड फ़ाल ऑफ़ रोमन एम्पायर” लिखकर उसे इतिहास में अमर कर दिया। पता नहीं भारतीय इतिहासकार “राइज़ एंड फ़ाल ऑफ़ विजयनगरम” क्यों नहीं लिखते। जो राष्ट्र अपना इतिहास भुला देते हैं या झुठलाते हैं, वो उसे दोहराने को अभिशप्त होते हैं।
एक इतालवी व्यापारी और यात्री निकोलो डी कोंटी ने हम्पी का दौरा किया था। उन्होंने अपने संस्मरणों में शहर की अनुमानित परिधि 97 किमी बताई थी, और लिखा था कि नगर ने कृषि और बस्तियों को अपने किलेबंदी में घेरे में लिया था। 1442 में, फारस से आए अब्दुल रज्जाक ने इसे किलों की सात परतों वाला एक शहर बताया, जिसमें बाहरी चार परतें कृषि, शिल्प और निवास के लिए थीं, भीतरी तीसरी से सातवीं परतें दुकानों और बाज़ारों से बहुत भरी हुई थीं।
1520 में, एक पुर्तगाली यात्री डोमिंगो पेस ने व्यापार दल के साथ विजयनगर का दौरा किया। उन्होंने अपना संस्मरण ‘क्रोनिका डॉस रीस डी बिसनागा’ के रूप में लिखा, जिसमें उन्होंने कहा कि विजयनगर “रोम जितना बड़ा, और देखने में बहुत सुंदर … दुनिया में सबसे अच्छा दिखने वाला शहर है। पेस के अनुसार, “इसके भीतर कई उपवन हैं, घरों के बगीचों में, पानी की कई नदियाँ हैं जो इसके बीच में बहती हैं, और कुछ स्थानों पर झीलें हैं…”।
1565 में विजयनगर साम्राज्य की हार और पतन के कुछ दशकों बाद, एक इतालवी व्यापारी और यात्री, सेसारे फेडेरिसी ने दौरा किया। सिनोपोली, जोहान्सन और मॉरिसन के अनुसार, फेडेरिसी ने इसे एक बहुत ही अलग शहर के रूप में वर्णित किया। उन्होंने लिखा, “बेज़ेनेगर (हम्पी-विजयनगर) शहर पूरी तरह से नष्ट नहीं हुआ है, घर अभी भी खड़े हैं, लेकिन खाली हैं, और जैसा कि बताया गया है, उनमें टाइग्रेस और अन्य जंगली जानवरों के अलावा कुछ भी नहीं है”।
इतिहासकार विल ड्यूरैंट ने अपनी ‘आवर ओरिएंटल हेरिटेज: द स्टोरी ऑफ सिविलाइजेशन’ में विजयनगर की कहानी का वर्णन किया है और इसकी विजय और विनाश को एक हतोत्साहित करने वाली कहानी कहा है। वह लिखते हैं, “इसकी स्पष्ट नैतिकता यह है कि सभ्यता एक अनिश्चित चीज़ है, जिसकी स्वतंत्रता, संस्कृति और शांति का नाजुक परिसर” किसी भी समय युद्ध और क्रूर हिंसा द्वारा उखाड़ फेंका जा सकता है।
हम्पी खंडहर ग्रेनाइट के पत्थरों से पटे पहाड़ी इलाके में स्थित है। यह पत्थरों के पहाड़ों की गोद में सांस लेता खंडहर है। दिन में तो यहाँ पर्यटकों की भीड़ से खुशनुमा वातावरण दिखता है। लेकिन रात होते ही एक भयावह सन्नाटा पसर जाता है। यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थल में शामिल हम्पी विजयनगर खंडहरों का एक उपसमूह भर है। लगभग सभी स्मारक विजयनगर शासन के दौरान 1336 और 1565 ई. की कालावधि में बनाए गए थे। इस साइट पर लगभग 1,600 स्मारक हैं। यह 41.5 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। एक ऑटो आपको बीस रुपयों में बिठाकर तीन-चार किलोमीटर की सैर कराता है। आप बोलते खंडहरों के अवशेष देख सकते हैं।
हम्पी का अर्थ है, कूबड़ जैसा। तुंगभद्रा नदी के घेरे में यह उठा हुआ भाग नंदी के कूबड़ जैसा दिखता है। जिस पर विरूपाक्ष और पम्पा देवी आसीन हैं। हम्पी नाम तुंगभद्रा नदी के प्राचीन नाम पम्पा से विकसित हुआ है। सृष्टि के देवता ब्रह्मा के ‘मन से जन्मी’ बेटी पम्पा विनाश के देवता शिव की एक समर्पित उपासक थी। उसके द्वारा की गई तपस्या से प्रभावित होकर भगवान शिव ने उसे वरदान दिया। उसने शिव से विवाह करने का विकल्प चुन उन्हें ही माँग लिया।
दक्षिण भारत में प्रचलित मंदिर निर्माण की अनेक शैलियाँ इस साम्राज्य ने समेकित कर विजयनगरीय स्थापत्य कला को एक नया स्वरूप प्रदान किया था। दक्षिण भारत के विभिन्न सम्प्रदाय तथा भाषाओं के घुलने-मिलने के कारण इस नई प्रकार की मंदिर निर्माण की वास्तुकला को प्रेरणा मिली। स्थानीय कणाश्म पत्थर का प्रयोग करके पहले दक्कन तथा उसके पश्चात् द्रविड़ स्थापत्य शैली में मंदिरों का निर्माण हुआ।
हम्पी पूरी तरह से पकी हुई ईंटों से बना है, और उसमें स्थानीय ग्रेनाइट के साथ चूना मोर्टार भी लगाया गया है। यह माना जाता है कि हम्पी की वास्तुकला इंडो इस्लामिक वास्तुकला से प्रेरित है। हम्पी की वास्तुकला की कई विशेषताएँ थीं, जो इसे अन्य प्राचीन शहरों से अलग करती थीं। हम्पी हजारों साल पुराना एक प्राचीन और अच्छी तरह से किलाबंद शहर था। भारत में हम्पी के खंडहर दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं। हम्पी में कहीं-कहीं वास्तुकला या दीवारों में न तो मोर्टार और न ही सीमेंटिंग एजेंट पाए गए। उनका उद्देश्य उन्हें इंटरलॉकिंग के माध्यम से एक साथ जोड़ना था।
हम्पी में, कमल और अन्य वनस्पतियों सहित मूर्तियों और रूपांकनों के साथ विस्तृत बाग और विभिन्न आनंद उद्यान बनाए। शाही परिसर की इमारतों में बहुत भव्य मेहराब, विशाल स्तंभों वाले हॉल और मूर्तियों को रखने के लिए गुंबद थे। यह एक सुंदर और समृद्ध शहर था जिसमें कई मंदिर, खेत और बाजार थे जो पुर्तगाल और फारस के व्यापारियों को आकर्षित करते थे। जो लोग यह कहते नहीं थकते कि भारत में नगरीय सभ्यता का विकास मुगलों/अंग्रेजों के आने के बाद हुआ था, वे बादशाह अकबर के जन्म के दो सौ पहले आबाद इस करिश्मा को क्या नाम देंगे, जिसका नाम ही विजयनगर था।
अपने खंडहरों में भी हम्पी आकर्षक और सुंदर है। हम्पी का भूभाग उसके खंडहरों की तरह ही रहस्यमय है – यह अलग-अलग आकार के पत्थरों से घिरा हुआ है, जिन पर चढ़कर आप पूरे शहर और उसके आस-पास के इलाकों को देख सकते हैं। मंदिरों और बाज़ारों के साथ शहर का निर्माण जिस तरह पत्थरों से किया गया था, वह आश्चर्यजनक है।
क्रमशः…
© श्री सुरेश पटवा
भोपाल, मध्य प्रदेश
*≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈