श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “शीतल हवाएँ”।)
जय प्रकाश के नवगीत # 91 ☆ शीतल हवाएँ ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
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माघ भीनी खुशबुओं से
भर गया है
चल रहीं शीतल हवाएँ।
भीगती है ओस में
बैठी हुई चिड़िया
पंख अपने निचोती है
बाड़ में कचनार का
आँचल उलझता सा
गिरा अधरों से मोती है
खिलखिलाती धूप आँगन
हँस रहा है
ले रहा सूरज बलाएँ।
फूल के मकरंद पर
छाया घना कुहरा
तितलियों के रंग परचम
सिहरते रूप फसलों के
पंछी चहकते हैं
आँख लेकर स्वप्न हरदम
फूल-पत्ते बाग मौसम
खिल गया है
झील में कलियाँ नहाएँ।
जंगलों में गंध के
पैग़ाम ले चलती हवा
राहों में स्वर लहरियाँ
जा रहीं स्कूल बस्ते
टाँग काँधों पर समय
गाँवों घर की बेटियाँ
पाँव से पगडंडियों का
मन मिला है
खेत ख़ुश हो गीत गाएँ।
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© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)
मो.07869193927,
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈