श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 334 ☆
कविता – कम हैं वे लोग…
श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆
आधे लोग परेशान हैं
दुनियां में
अपनी
मानसिक स्थितियो से
डिप्रेशन,
ऑटिज्म,
मूड डिसआर्डर, नर्वसनेस,
एंकजाइटी, सिजोफ्रेनिया,
सोशल एंक्जायाटी
वगैरह वगैरह से।
और ढेर सारे लोगों को
पता ही नहीं
कि उनकी मनोदशा ठीक नहीं है।
वे उनकी बातों में परिवेश की बुराई कर
अपनी डींगे हांककर
खुद की मानसिक चिकित्सा
कर लेते हैं चुपचाप ।
काश बन सके
वो दुनियां
जहां सब
सुकून से सो पायें सितारों की छांव में और
भोर के सूरज से जी भर
मन की बातें कर सकें
हवा के झोंको का, क्यारी के फूलों से
अन्तर्संवाद सुन समझ
लिख सकें
दो शब्द बेझिझक
प्यार के ।
☆
© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार
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≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈