श्री राकेश कुमार
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)
☆ आलेख # 119 ☆ देश-परदेश – बाप तो बाप ही होता है ☆ श्री राकेश कुमार ☆
कुछ दिन पूर्व एक पिता ने पुत्र के अपहरण की शिकायत पुणे पुलिस को की थी। पिता राजनीति पेशे से है, तुरंत कार्यवाही हुई और पता चला पुत्र को एक चार्टर्ड प्लेन से अगवा कर बैंकॉक ले जाया जा रहा है।
सरकार के सभी घोड़े छोड़ दिए गए पुत्र की लोकेशन पोर्ट ब्लेयर के आस पास थी। सरकारी प्रभाव के उपयोग से पायलट ने वायुयान को वापस मोड़ कर पुणे में सुरक्षित वापसी कर दी थी। जहां यात्रियों के स्वागत के लिए पुलिस तैनात थी।
वायुयान में दो व्यक्ति और भी पुत्र के साथ यात्री थे। बताया जाता है, मात्र अठत्तर लाख रुपए से एक तरफा पुणे से बैंकॉक के लिए भुगतान हुआ था। वापिस यात्रा के समय यात्रियों के सामने लगा हुआ स्क्रीन बंद कर दिया गया था, ताकि उनको पता ना लगे कि उनके विमान की क्या लोकेशन है। लौट के बुद्धू घर को आए।
अब ऐसा बताया गया कि राजनेता पुत्र किसी व्यापार के सिलसिले में बैंकॉक की यात्रा पर थे। पिता को बिना बताए ही उन्होंने विमान की बुकिंग की थी।बाप तो बाप ही होता है, आसमान से धरती पर लाकर पटक दिया। आसमान के उड़ते पक्षी को जमीन की धूल चटवा कर रख दी एक बाप ने। ये भी हो सकता है, वो बैंकॉक बौद्ध धर्म के ज्ञान के लिए गए हों। जितने मुंह उतनी बातें, बैंकॉक यात्रा के बारे में तो लोग किसी के लिए भी कुछ भी कह देते हैं।
ये सब जानकार हमें भी अपने बाप की याद आ गई, वर्ष सत्तर में “चेतना” फिल्म देखने के लिए स्कूल की नवमी कक्षा से भाग कर गए थे। इंटरवल में पिता जी ने हॉल से रंगे हाथ पकड़ कर हमारे शरीर का रंग नीला कर दिया था। उनको हमारी लोकेशन की जानकारी उनके किसी सूत्र ने दे दी थी।
उस दिन जो चेतना जाग्रत हुई थी, आज भी जब पिक्चर देखने जाते है, तो हॉल के अंदर हुई हमारी पिटाई से जहन सिहर उठ जाता है। समय बदल गया लेकिन बाप नहीं बदले।
© श्री राकेश कुमार
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