श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “लोग” ।)
जय प्रकाश के नवगीत # 92 ☆ लोग ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
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रीति या रिवाजों के
मुहताज हुए लोग
कटे हुए पर वाले
परवाज़ हुए लोग ।
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गर्भवती माँ की
अनदेखी सी लाज
बूढ़े की लाठी सा
टूटता समाज
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बटन बिना कुरते के
बस काज हुए लोग ।
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टेढ़ी पगडंडी पर
गाँवों के ख़्वाब
शहरों ने ओढ़ा है
झूठ का रुआब
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सच के मुँह तोतले
अल्फ़ाज़ हुए लोग ।
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© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)
मो.07869193927,
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈