स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे सदैव हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते थे। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपका भावप्रवण कविता – कथा क्रम (स्वगत)।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 226 – कथा क्रम (स्वगत)… ✍

(नारी, नदी या पाषाणी हो माधवी (कथा काव्य) से )

क्रमशः आगे…

वर्तमान की परिधि में,

फिर भी

उत्तर नहीं पाता।

सोच नहीं पाता

तुम्हारे युग की

सामाजिक व्यवस्था

कर नहीं पाता

रहस्य भेदन।

पहुँच नहीं पाता

तुम्हारी जीवन कथा के

मर्म तक ।

तुम आज होतीं

तो

कही जातीं रूपाजीवा ।

संभवतः

घटना क्रम ने

जगाया हो

तुम्हारा स्त्रीत्व,

शायद

इसीलिये

हो गईं थीं

स्वयंवर से विमुख ।

और तपोवन

गमन?

शायद

प्रायश्चित के लिये।

हम

कैसे सुनायें

तुम्हारे त्याग

समर्पण

और

रहस्य की कथा

अपनी बेटियों को?

आश्वस्त  हैं

 हम

कि

हमारी बेटियाँ

 नियति

या

वरदान की डोर में बंधी

 गौएँ में नहीं है।

 प्रश्न अनुतरित है,

 माधवी

तुम

नारी, नदी या पाषाणी हो?

 – समाप्त – 

© डॉ राजकुमार “सुमित्र” 

साभार : डॉ भावना शुक्ल 

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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