श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं सजग अग्रज साहित्यकार श्री मनोज कुमार शुक्ल “मनोज” जी के साप्ताहिक स्तम्भ “मनोज साहित्य ” में आज प्रस्तुत है आपकी भावप्रवण कविता “सबकी अपनी राम कहानी…”। आप प्रत्येक मंगलवार को आपकी भावप्रवण रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे।
मनोज साहित्य # 164 – सबकी अपनी राम कहानी… ☆
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सबकी अपनी राम कहानी।
आलौकिक गंगा का पानी।।
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सबके अलग-अलग दुखड़े हैं,
पक्की-छत तो, उजड़ी-छानी।।
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भटका तन जंगल-जंगल है,
सत्ता गुमी मिली पटरानी।
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जीवन जिसने खरा जिया है,
उसका नहीं मिला है सानी।
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शांति स्वरूपा सीता खोई,
ढूंढ़ेंगे हनुमत सम-ज्ञानी।
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रावण का वैभव विशाल था,
पर माथे पर थी पैशानी।
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एक-एक कर बिछुड़े अपने,
फिर भी रण हारा अभिमानी।
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संघर्षों में छिपी पड़ी है,
पौरुषता की अमर जुबानी।
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राम राज्य का सपना सुंदर,
देख रहा हर हिंदुस्तानी।
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© मनोज कुमार शुक्ल “मनोज”
संपर्क – 58 आशीष दीप, उत्तर मिलोनीगंज जबलपुर (मध्य प्रदेश)- 482002
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