श्री सुरेश पटवा

(श्री सुरेश पटवा जी  भारतीय स्टेट बैंक से  सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों  स्त्री-पुरुष “गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की  (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं  तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व  प्रतिसाद मिला है। आज से प्रत्यक शनिवार प्रस्तुत है  यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा)

? यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-१५ ☆ श्री सुरेश पटवा ?

विट्ठल मंदिर

हम्पी का विशाल फैलाव तुंगभद्रा के घेरदार आग़ोश और गोलाकार चट्टानों की पहाड़ियों की गोद में आकृष्ट करता है। घाटियों और टीलों के बीच पाँच सौ से भी अधिक मंदिर, महल, तहख़ाने, जल-खंडहर, पुराने बाज़ार, शाही मंडप, गढ़, चबूतरे, राजकोष… आदि असंख्य स्मारक हैं। एक लाख की आबादी को समेटे बहुत खूबसूरत नगर नदी किनारे बसा था। एक दिन में सभी को देखना कहाँ संभव है। हम्पी में ऐसे अनेक आश्चर्य हैं, जैसे यहाँ के राजाओं को अनाज, सोने और रुपयों से तौला जाता था और उसे निर्धनों में बाँट दिया जाता था। रानियों के लिए बने स्नानागार, मेहराबदार गलियारों, झरोखेदार छज्जों और कमल के आकार के फव्वारों से सुसज्जित थे।

हम्पी परिसर में विट्ठल मंदिर एक बहुत प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है। विट्ठल मंदिर और बाजार परिसर तुंगभद्रा नदी के तट के पास विरुपाक्ष मंदिर के उत्तर-पूर्व में 3 किलोमीटर से थोड़ा अधिक  दूर है। यह हम्पी में सबसे कलात्मक रूप से परिष्कृत हिंदू मंदिर अवशेष विजयनगर के केंद्र का हिस्सा रहा है। यह स्पष्ट नहीं है कि मंदिर परिसर कब बनाया गया था, और इसे किसने बनवाया था। अधिकांश विद्वान इसका निर्माण काल 16वीं शताब्दी के आरंभ से मध्य तक बताते हैं। कुछ पुस्तकों में उल्लेख है कि इसका निर्माण देवराय द्वितीय के समय शुरू हुआ, जो कृष्णदेवराय, अच्युतराय और संभवतः सदाशिवराय के शासनकाल के दौरान जारी रहा। संभवतः 1565 में शहर के विनाश के कारण निर्माण  बंद हो गया। शिलालेखों में पुरुष और महिला के नाम शामिल हैं, जिससे पता चलता है कि परिसर का निर्माण कई प्रायोजकों द्वारा किया गया था।

यह मंदिर कृष्ण के एक रूप विट्ठल को समर्पित है, जिन्हें  विठोबा भी कहा जाता था। मंदिर पूर्व की ओर खुलता है, इसकी योजना चौकोर है और इसमें दो तरफ के गोपुरम के साथ एक प्रवेश गोपुरम है। मुख्य मंदिर एक पक्के प्रांगण और कई सहायक मंदिरों के बीच में स्थित है, जो सभी पूर्व की ओर संरेखित हैं। मंदिर 500 गुणा 300 फीट के प्रांगण में एक एकीकृत संरचना है जो स्तंभों की तिहरी पंक्ति से घिरा हुआ है। यह एक मंजिल की नीची संरचना है जिसकी औसत ऊंचाई 25 मीटर है। मंदिर में तीन अलग-अलग हिस्से हैं: एक गर्भगृह, एक अर्धमंडप और एक महामंडप या सभा मंडप है।

विट्ठल मंदिर के प्रांगण में पत्थर के रथ के रूप में एक गरुड़ मंदिर है; यह हम्पी का अक्सर चित्रित प्रतीक है। पूर्वी हिस्से में प्रसिद्ध शिला-रथ है जो वास्तव में पत्थर के पहियों से चलता था। इतिहासकार डॉ.एस.शेट्टर के अनुसार रथ के ऊपर एक टावर था। जिसे 1940 के दशक में हटा दिया गया था। पत्थर रथ भगवान विष्णु के आधिकारिक वाहन गरुड़ को समर्पित है। जिसकी फोटो 50 के नोट के पृष्ठ भाग पर अंकित है। पर्यटक 50 का नोट हाथ में रख दिखाते हुए फोटो ले रहे थे। हमारे साथियों ने भी सेल्फ़ी फोटो खींच मोबाइल में क़ैद कर लिए।

पत्थर के रथ के सामने एक बड़ा, चौकोर, खुले स्तंभ वाला, अक्षीय सभा मंडप या सामुदायिक हॉल है। मंडप में चार खंड हैं, जिनमें से दो मंदिर के गर्भगृह के साथ संरेखित हैं। मंडप में अलग-अलग व्यास, आकार, लंबाई और सतह की फिनिश के 56 नक्काशीदार पत्थर के बीम से जुड़े स्तंभ हैं जो टकराने पर संगीतमय ध्वनि उत्पन्न करते हैं। स्थानीय पारंपरिक मान्यता के अनुसार, इस हॉल का उपयोग संगीत और नृत्य के सार्वजनिक समारोहों के लिए किया जाता था। गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ है।

मंदिर परिसर के बाहर, इसके दक्षिण-पूर्व में, लगभग एक किलोमीटर (0.62 मील) लंबी एक स्तंभयुक्त बाज़ार सड़क है। सभी कतारबद्ध दुकान परिसर अब खंडहर हो चुके हैं। अब बिना छत वाले पत्थरों के खंभे खड़े हैं। उत्तर में एक बाज़ार और एक दक्षिणमुखी मंदिर है जिसमें रामायण-महाभारत के दृश्यों और वैष्णव संतों की नक्काशी है। उत्तरी सड़क हिंदू दार्शनिक रामानुज के सम्मान में एक मंदिर में समाप्त होती है।  विट्ठल मंदिर के आसपास के क्षेत्र को विट्ठलपुरा कहा जाता था। इसने एक वैष्णव मठ की मेजबानी की, जिसे अलवर परंपरा पर केंद्रित एक तीर्थस्थल के रूप में डिजाइन किया गया था। शिलालेखों के अनुसार यह शिल्प उत्पादन का भी केंद्र था।

क्रमशः…

© श्री सुरेश पटवा 

भोपाल, मध्य प्रदेश

*≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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