स्व. डॉ. राजकुमार तिवारी “सुमित्र”

(संस्कारधानी  जबलपुर के हमारी वरिष्ठतम पीढ़ी के साहित्यकार गुरुवर डॉ. राजकुमार “सुमित्र” जी  को सादर चरण स्पर्श । वे सदैव हमारी उंगलियां थामकर अपने अनुभव की विरासत हमसे समय-समय पर साझा करते रहते थे। इस पीढ़ी ने अपना सारा जीवन साहित्य सेवा में अर्पित कर दिया।  वे निश्चित ही हमारे आदर्श हैं और प्रेरणास्रोत हैं। आज प्रस्तुत हैं  आपकी भावप्रवण बुन्देली कविता – कौनऊँ सें का कैनें।)

✍ साप्ताहिक स्तम्भ – लेखनी सुमित्र की # 227 – कौनऊँ सें का कैनें… ✍

(बढ़त जात उजयारो – (बुन्देली काव्य संकलन) से)

कौनऊँ सें का कैनें

जौन भाँत सें राखें राम

तौन भाँत सें रैनें ।

अपनी पीरा कयें कौन सें

कैबे सें का होने ।

पीर कौ मारौ जगे रातभर

बाकी सबखों सोनें ।

 

अपने मों में कयें कायरवों

ऊसर में का बौनें

भैया खता आँग को अपने

खुदइ परत है धोनें ।

 

कैबे खों तो सबरे अपने

कोउ काउ को नइँयाँ

बखत परे पे बता देते हैं

सब के सब कुतकैयाँ ।

 

ऐई में हमने सोच लई अब

हम खाँ चुप्पइ रैनें ।

कोनऊँ सें का कैनें ।

© डॉ. राजकुमार “सुमित्र” 

साभार : डॉ भावना शुक्ल 

112 सर्राफा वार्ड, सिटी कोतवाली के पीछे चुन्नीलाल का बाड़ा, जबलपुर, मध्य प्रदेश

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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Dr Bhavna Shukla

सादर नमन