श्री राकेश कुमार
(श्री राकेश कुमार जी भारतीय स्टेट बैंक से 37 वर्ष सेवा के उपरांत वरिष्ठ अधिकारी के पद पर मुंबई से 2016 में सेवानिवृत। बैंक की सेवा में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, राजस्थान के विभिन्न शहरों और वहाँ की संस्कृति को करीब से देखने का अवसर मिला। उनके आत्मकथ्य स्वरुप – “संभवतः मेरी रचनाएँ मेरी स्मृतियों और अनुभवों का लेखा जोखा है।” आज प्रस्तुत है आलेख की शृंखला – “देश -परदेश ” की अगली कड़ी।)
☆ आलेख # 121 ☆ देश-परदेश – अंक 144 की महत्ता ☆ श्री राकेश कुमार ☆
हमारे यहां तो प्रत्येक अंक की महत्ता होती है।अंक 144 इस मामले में सर्वोपरि कहा जा सकता हैं। अस्सी के दशक से ये सुनते आ रहे थे, 144 धारा लग गई हैं। सावधान रहें।
पूर्व में घर के लिए बहुत सारे सामान दर्जन के हिसाब से क्रय किए जाते थे। जब पिताजी इस बाबत दादा श्री को हिसाब देते तो वो पूछते थे ? ग्रोस (Gross) का क्या भाव है, आरंभ में हमे समझ नहीं आता था, कि ये ग्रोस (Gross) क्या पैमाना है ? बारह दर्जन का ग्रोस (Gross) अर्थात संख्या 144 होता है।
हमारे यहां पवित्र स्नान भी 6 या 12 वर्ष पश्चात कुम्भ के माध्यम से होता हैं।इस बार का कुम्भ 144 वर्ष बाद हुआ, जिसको महाकुंभ कहते हैं। हमारे पूर्व की तीन पुश्तों को तो कभी ऐसा अवसर प्राप्त नहीं हुआ था।
परिवार के सबसे उम्रदराज चाचा श्री नौ दशक से अधिक का जीवन काल व्यतीत कर चुके हैं। हमने उनसे इस बाबत पूछा क्या आपने कभी महाकुंभ के बारे में कुछ सुना था ?
उन्होंने याददाश्त के सभी घोड़े खोल कर कुछ समय में बताया कि उन्होंने भी अपने दादा श्री से ही सुना भर था।
हमारा परिवार उस समय देश के अविभाजित उत्तर पश्चिम में निवास करता था। वहां से प्रयागराज करीब पंद्रह सौ से अधिक मील की दूरी पर है। यातायात का एक मात्र साधन घोड़े ही हुआ करते थे।
परिवार से चार पुरुष घोड़े से दिवाली के बाद प्रयागराज गए थे, वापसी बैसाख में हुई, चारों घोड़े तो वापस आ गए थे, लेकिन एक सवार कम था। मार्ग में जंगली जानवर के शिकार हो गए थे।
उनके आगमन पर आसपास के गांवों में बहुत सम्मान भी मिला था। लोग दूर दूर से उनके दर्शन के लिए भी आए, क्योंकि उस समय में वो महाकुंभ (144 वर्ष पूर्व) स्नान कर वापिस जो आए थे। इस से ये माना जा सकता हैं, कि इस बार का कुंभ 144 वर्ष बाद महाकुंभ के रूप में था।
© श्री राकेश कुमार
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