श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत है स्त्री विमर्श पर आधारित विचारणीय लघुकथा “कोख परीक्षा”।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 219 ☆
🌻लघु कथा🌻 🩺कोख परीक्षा🩺
आज के इस भागती दौड़ती तेज रफ्तार की दुनिया जहाँ माँ – बाप, संवेदना, ममता, दया, सेवा, मानवता, बधाई, दुख – सुख यहाँ तक कि किराए की कौख भी मिलने लगी है।
किसे अपना कहा जाए किसे नकारा जाए समझ नहीं आता। नारी से नारी के लिए कोख परीक्षा मातृत्व पर सवाल खड़ी कर रही है।
परंतु फिर भी जमाना चल रहा है। अब तो आप जिस चेहरे की काया कृति चाहते हैं डॉक्टर वह भी कोख में बनाते चले जा रहे हैं।
जाने भविष्य क्या होगा। परंतु जो भी हो नारी की मातृत्व शक्ति को सृष्टि भी नहीं बदल सकती।
ईशा को कोख परीक्षा के लिए ले जाया जा रहा था। पतिदेव का सख्त आदेश और निर्णय बेटा ही वंश का वारिस होगा।
सफेद पड़ा शरीर, आँखें चेहरे पर धँसी, मानो कई रातों से सोई नहीं।
पता चला कोख में एक नहीं जुड़वा बेटी है। बस फिर क्या था!!!! अस्पताल से गाड़ी सीधे ईशा के मायके की ओर बढ़ चली। कारण सिर्फ इतना कि ईशा ने अपना कोख गिराने से मना कर दिया।
गाड़ी से उतरते समय ईशा ने पतिदेव के पैरों पर शीश रखते कहा– मैं उस दिन का इंतजार करूंगी। जब आपको लेकर कोई गाड़ी किसी वृद्धा आश्रम के सामने रुके। बेटों से वंश – – – – गहरी सांस छोड़ते।
मेरी बेटियाँ, आज नहीं कल कोख का महत्व समझ जाएंगी। परंतु किराए का बेटा क्या कोख परीक्षा समझ पाएगा।
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© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈