श्रीमती  सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य  शृंखला में आज प्रस्तुत हैं उनकी  दो  छोटे भाइयों के संबंधों  के ताने बाने और पिता की भूमिका पर आधारित एक शिक्षाप्रद लघुकथा  “पतंग की डोर ।  इस सर्वोत्कृष्ट विचारणीय लघुकथा के लिए श्रीमती सिद्धेश्वरी जी को हार्दिक बधाई।

☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी  का साहित्य # 44 ☆

☆ लघुकथा  – पतंग की डोर

 

छत में पतंग बाजी चल रही थी। सभी बच्चें, युवा अपने अपने पतंग का मांझा और पतंग संभालकर ऊंचे आकाश में पतंग उड़ा रहे थे। पवन मंद गति से सभी का साथ निभाते हुए  पतंग आगे बढ़ने में सहायक हो रही थी।

रंग-बिरंगे पतंग चारों तरफ दिखाई दे रही थी। दो भाई रोशन और रोहित भी पतंग उड़ा रहे थे। उनके पापा  धीरे-धीरे टहल रहे थे

अचानक हवा तेज हो गई। छोटे भाई रोहित ने आवाज़ लगाई.. भैया मेरी पतंग कटने वाली है, जरा संभाल लेना, शायद डोर उलझ गई है।

बड़े भाई रोशन ने तुरंत अपनी पतंग संभाल, छोटे भाई की भी उलझी हुई मांझा सुधारने लगा।

उसी समय उनके पापा धीरे धीरे चलते आकर कहने लगे.. बेटा तुम दोनों अपनी पतंग का ध्यान रखो। मैं डोर सुलझा कर दोनों का मांझा चरखा संभाल रहा हूं। तुम पतंग गिरने नहीं देना।

दोनों भाई रोशन, रोहित पतंग की डोर संभाले पापा से  जाकर लिपट  गए। उंचाई पर  पतंग हवा के साथ अठखेलियाँ कर रही थीं।

 

© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’

जबलपुर, मध्य प्रदेश

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