श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
(संस्कारधानी के सुप्रसिद्ध एवं अग्रज साहित्यकार श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव जी के गीत, नवगीत एवं अनुगीत अपनी मौलिकता के लिए सुप्रसिद्ध हैं। आप प्रत्येक बुधवार को साप्ताहिक स्तम्भ “जय प्रकाश के नवगीत ” के अंतर्गत नवगीत आत्मसात कर सकते हैं। आज प्रस्तुत है आपका एक भावप्रवण एवं विचारणीय नवगीत “हारता गाँव”।)
जय प्रकाश के नवगीत # 94 ☆ हारता गाँव ☆ श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव ☆
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नई इबारत
लिखने बैठा
आज हमारा गाँव ।
सड़कों पर
छल की महफिल
दफ्तर गुलजारी के
गली गली
स्थापित टपरे
पान सुपारी के
इधर सिमटता
उधर फैलता
फिरे उघारा गाँव।
घर आंगन
सहमे सहमे से
दीवट देहरी द्वार
बूढ़ा छप्पर
गुपचुप सहता
मंहगाई की मार
मौन तोड़ता
द्वंद्व ओढ़ता
लगे विचारा गाँव।
राजनीति का
मोहरा बनकर
खोता अपनापन
जाति धर्म के
खेमों में बँट
लुटा रहा जीवन
कभी सियासत
कभी नियति से
पल पल हारा गाँव
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© श्री जय प्रकाश श्रीवास्तव
सम्पर्क : आई.सी. 5, सैनिक सोसायटी शक्ति नगर, जबलपुर, (म.प्र.)
मो.07869193927,
≈संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈