श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
(ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों/अलंकरणों से पुरस्कृत/अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “उम्मीद के द्वारे, नेह निहारे… ”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन। आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – आलेख # 234 ☆
☆ उम्मीद के द्वारे, नेह निहारे… ☆
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साथ में जब आपका, विश्वास मिलने लग गया।
आसरा उम्मीद वाला, भाव हिय में जग गया। ।
नेह का बंधन अनोखा, जुड़ गए जिससे सभी।
प्रीत की चलना डगर पर, भावनाएँ शुभ तभी। ।
कर्म का फल अवश्य सम्भावी है, ये बात गीता में कही गयी है। और इसी से प्रेरित हो लोग निरन्तर कर्म में जुटे रहते हैं, बिना फल की आशा किए। कोई उम्मीद न रखना तो सही है किन्तु इसका परिणाम क्या होगा ये चिन्तन न करना कहाँ की समझदारी होगी।
अक्सर लोग ये कहते हुए पल्ला झाड़ लेते हैं कि मैंने तो सब कुछ सही किया था, पर लोगों का सहयोग नहीं मिला जिससे सुखद परिणाम नहीं आ सके। क्या इस बात का मूल्यांकन नहीं होना चाहिए कि लोग क्यों कुछ दिनों में ही दूर हो जाते हैं …? क्या सभी स्वार्थी हैं या जिस इच्छा से वे जुड़े वो पूरी नहीं हो सकती इसलिए मार्ग बदलना एकमात्र उपाय बचता है।
कारण चाहे कुछ भी हो पर इतना तो निश्चित है कि सही योजना द्वारा ही लक्ष्य मिला है केवल परिश्रम किसी परिणाम को सुखद नहीं बना सकता उसके लिए सही राह,श्रेष्ठ विचार व नेहिल भावना की महती आवश्यकता होती है।
© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
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