श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है आपकी – एक बुंदेली गीत – होरी में…। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 250 ☆
☆ एक बुंदेली गीत – होरी में… ☆ श्री संतोष नेमा ☆
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बिरहा गा रहो श्रृंगार होरी में
सबै खों छा रहो खुमार होरी में
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रही ने अब सुध-बुध कोऊ खों
रंगों को चढ़ रहो बुखार होरी में
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ताक लगाए बैठी है बिरहन
जियरा हो रहो बेकरार होरी में
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लरका – बच्चा सभई बौरा रये
कोउ पै रहो ने ऐतवार होरी में
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टेसू पलाश के रंग ने दिखते
अब छा रहो धूल गुबार होरी में
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भंग चढ़ा लई सबने जम खें
पी ख़ें ढूंढ रहो अचार होरी में
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ऐसों रंग चढ़ गओ सभई खो
संतोष बन रहो रंगदार होरी में
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© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार
आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 7000361983, 9300101799
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