प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

(आज प्रस्तुत है गुरुवर प्रोफ. श्री चित्र भूषण श्रीवास्तव जी  द्वारा रचित – “कविता  – आओ सोचें…। हमारे प्रबुद्ध पाठकगण प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ जी  काव्य रचनाओं को प्रत्येक शनिवार आत्मसात कर सकेंगे.।) 

☆ काव्य धारा # 216

☆ शिक्षाप्रद बाल गीत – आओ सोचें…  ☆ प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’ 

आओ सोचें कि हम सब बिखर क्यों रहे

स्वार्थ में भूलकर अपना प्यारा वतन

क्यों ये जनतंत्र दिखता है बीमार सा

सभी मिलकर करें उसके हित का जतन ।

*

सबको अधिकार है अपनी उन्नति का

पर करें जो भी उसमें सदाचार हो

नीति हो, प्रीति हो, सत्य हो, लाभ हो

ध्यान हो स्वार्थ हित न दुराचार हो ।

*

राह में समस्याएँ तो आती ही हैं

उनके हल के लिये कोई न तकरार हो

सब विचारों का समुदार सन्मान हो

आपसी मेल सद्भावना प्यार हों ।

*

गाँधी ने राह जो थी दिखाई उसे

बीच में छोड़ शायद गये हम भटक

था अहिंसा का वह रास्ता ही सही

उसपे चलते तो होती उठा न पटक ।

© प्रो चित्र भूषण श्रीवास्तव ‘विदग्ध’

ए २३३ , ओल्ड मीनाल रेजीडेंसी  भोपाल ४६२०२३

मो. 9425484452

[email protected]

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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