श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 341 ☆
आलेख – मुगल भारत में इसलिए स्थाई हुए क्योंकि उन्होंने भारतीय पर्वों की परवाह की…
श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ☆
विवेक रंजन श्रीवास्तव
भोपाल
होली रंगों का त्योहार है। रंग खुशी के प्रतीक होते हैं। दुखद है कि आज गंगा जमनी तहजीब की बात तो होती है पर जो लोग अपने हित साधन के लिए यह बात करते हैं वे ही उस पर अमल नहीं करते। इतिहास के पन्नों में देखें तो भारत में मुसलमान केवल इसलिए यहां के निवासी बन सके क्योंकि उन्होंने हिंदुस्तान की संस्कृति को अपनाया । मुगल बादशाहों के समय में होली के त्योहार का खूब जिक्र मिलता है। इतिहास के जानकार बताते हैं कि मुगल शासन में बादशाहों को रंग से कोई परहेज नहीं था । मुगल शासन काल में मवेशी के सींगो के खोल में रंग भरकर पिचकारी के रूप में इस्तेमाल कर रंग फेंका जाता था। बादशाह जहांगीर के समय में बांस की पिचकारी बनाकर उसमें रंग भरकर वह अपने महल के दरबारी और राज्यों के साथ होली खेलते थे। यह उल्लेख साहित्य में वर्णित है। बादशाह मोहम्मद शाह के होली खेलने का जिक्र इतिहास में दर्ज है। जहांगीर काल में जहांगीर द्वारा होली खेलने की कई पेंटिंग्स आज भी मौजूद हैं। प्लास्टिक का आविष्कार मुगल शासन काल में तो नहीं हुआ था। तब बांस की पिचकारी बनाकर , या धातु की पिचकारी का उपयोग किया जाता था। ग़ुलाल और वनस्पतियों, खास कर टेसू के फूलों के रंगों को पानी में घोलकर पिचकारी में भरा जाता था। जिससे होली खेली जाती थी। यह प्रथा भारत की संस्कृति का हिस्सा है।आज भी कई ऐसे मुस्लिम परिवार हैं जो होली का त्योहार गर्व से खेलते हैं। होली को ईद e गुलाबी कहा जाता था । अकबर का जोधाबाई के साथ और जहांगीर का नूरजहां के साथ होली खेलने का वर्णन है. पत्थर के बड़े हौद में रंग बनाया जाता था। अतः आज रंग का विरोध परम्परा या सांस्कृतिक न होकर राजनैतिक अधिक दिखता है।
☆
© श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’
म प्र साहित्य अकादमी से सम्मानित वरिष्ठ व्यंग्यकार
संपर्क – ए 233, ओल्ड मिनाल रेजीडेंसी भोपाल 462023
मोब 7000375798, ईमेल [email protected]
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈