श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है आपका – एक बाल गीत – हमें गधा कहते हैं सारे। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 251 ☆
☆ एक बाल गीत – हमें गधा कहते हैं सारे ☆ श्री संतोष नेमा ☆
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हमें गधा कहते हैं सारे
हम हैं लम्बी मूंछों बारे
सहज सरल स्वभाव हमारा
हम पर बोझा डालें सारे
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गधा हमें धोबी का समझें
कान हमारे जबरन उमठें
ढेंचू ढेंचू कह कर फिर भी
लाद पीठ पर चलते प्यारे
हमें गधा कहते हैं सारे
*
रखता सबसे वो है यारी
पर अफसोस गधा को भारी
एक अरज करता है सबसे
कहिए गधा मुझे मत प्यारे
हमें गधा कहते हैं सारे
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© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार
आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 7000361983, 9300101799
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈