श्री सुरेश पटवा
(श्री सुरेश पटवा जी भारतीय स्टेट बैंक से सहायक महाप्रबंधक पद से सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और स्वतंत्र लेखन में व्यस्त हैं। आपकी प्रिय विधा साहित्य, दर्शन, इतिहास, पर्यटन आदि हैं। आपकी पुस्तकों स्त्री-पुरुष “, गुलामी की कहानी, पंचमढ़ी की कहानी, नर्मदा : सौंदर्य, समृद्धि और वैराग्य की (नर्मदा घाटी का इतिहास) एवं तलवार की धार को सारे विश्व में पाठकों से अपार स्नेह व प्रतिसाद मिला है। आज से प्रत्यक शनिवार प्रस्तुत है यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा।)
यात्रा संस्मरण – हम्पी-किष्किंधा यात्रा – भाग-१८ ☆ श्री सुरेश पटवा
अगली तीन आदतें परस्पर निर्भरता यानी, दूसरों के साथ काम करने के साथ उनसे अंतरसंबंधों से संबंधित हैं।
आदत 4: “परस्पर लाभप्रद समाधान के बारे में सोचें” (Think win-win)
अपने रिश्तों में पारस्परिक रूप से लाभप्रद समाधान या समझौते की तलाश करें। सभी के लिए “लाभ” की तलाश करके लोगों को महत्व देना और उनका सम्मान करना अंततः एक बेहतर दीर्घकालिक समाधान है। पारस्परिक लाभप्रदता, मानवीय संपर्क और सहयोग के लिए एक भावनात्मक मज़बूती देती है। इससे टीम का निर्माण होता है। हनुमान इसी विधि से सेना को तैयार करते हैं।
आदत 5: “पहले समझने की कोशिश करो, फिर समझाने की” (First seek to understand then to be understood)
अधिकांश लोग अपनी बातें दूसरों कों समझाते रहते हैं। जबकि टीम बनाने के लिए दूसरों को भी समझने की ज़रूरत होती है। जिसके बग़ैर समूह की सक्रियता नहीं बन सकती। किसी व्यक्ति को वास्तव में समझने के लिए सहानुभूतिपूर्वक सुनने का उपयोग करें। यह उन्हें प्रतिक्रिया देने और प्रभावित होने के लिए खुले दिमाग से काम करने के लिए मजबूर करता है। लंका उड़ान पूर्व हनुमान प्रतिक्रिया दिए बग़ैर साथियों को सुनते हैं। इससे परस्पर सौहार्द, देखभाल और सकारात्मक समस्या-समाधान का वातावरण बनता है।
आदत 6: तालमेल बिठाना (Synergy)
समूह में तालमेल बिठाने के तीन आयाम हैं। भावनात्मक बैंक खाता की देखभाल, अन्य व्यक्तियों के साथ भावनात्मक रिश्तों का भरोसा और तार्किक आधार देना। बैंक खाते की तरह रिश्तों में भी भावनात्मक जमा-नामे प्रविष्टियाँ होती हैं। किसी की सराहना जमा और आलोचना नामे प्रिविष्टि होती है। आपसी बातचीत में इनका ध्यान रखा जाना चाहिए ताकि भावनात्मक खातों में अधिविकर्ष ना होने पाये। लेखक का आह्वान है कि सकारात्मक टीम वर्क के माध्यम से लोगों की शक्तियों को संयोजित करें, ताकि उन लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके जिन्हें कोई भी अकेले प्राप्त नहीं कर सकता। हनुमान इसी टेक्नीक का प्रयोग करके वानर सेना को एक टीम के रूप में तैयार करते हैं।
आदत 7: “निरंतर साधना का व्रत” (Sharpen the saw)
एक स्थायी, दीर्घकालिक, प्रभावी जीवनशैली बनाने के लिए किसी को अपने संसाधनों, ऊर्जा और स्वास्थ्य को संतुलित और नवीनीकृत करते रहना चाहिए। वह मुख्य रूप से शारीरिक नवीनीकरण के लिए व्यायाम, प्रार्थना और मानसिक नवीनीकरण के लिए नियमित अध्ययन से प्राप्त किया जाता रह सकता है। आध्यात्मिक नवीनीकरण के लिए समाज की सेवा का भी उल्लेख किया है।
जीवन संग्राम में हमारा स्वास्थ्य एक अस्त्र की तरह प्रयोग में आता है। स्वास्थ्य के चार आयाम हैं- शारीरिक, बौद्धिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक। नियमित व्यायाम से शरीर, अध्ययन से बुद्धि, भावनात्मक बैंक खाता रखरखाव और आध्यात्मिक भक्ति से स्वास्थ्य अस्त्र को हमेशा पैना रखा जा सकता है। तभी आप जीवन संग्राम में खरे उतर सकते हैं। हनुमान जी के संपूर्ण जीवन से यही शिक्षा मिलती है कि उन्होंने कभी भी स्वास्थ्य के नियमों में ढिलाई नहीं बरती।
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हनुमान जी एक बेहतरीन प्रबंधक भी रहे हैं। वे ना सिर्फ अपने लक्ष्यों को हासिल करना जानते हैं बल्कि मानव संसाधनों का किस तरह प्रयोग करना है, ये बात भी उन्हें अच्छी तरह मालूम है।
हनुमान जी हर काम को योजनाबद्ध (Planning) तरीके और बड़ी आसानी से कर सकते थे। हनुमान जी स्वामी श्री राम के प्रति समर्पण, अनुशासन, दृढ़ संकल्प और वफादारी के लिए जाने जाते थे। मन, कर्म और वाणी पर संतुलन यह हनुमान जी से सीखने वाले गुण हैं। ज्ञान, बुद्धि, विद्या और बल के साथ ही उनमें विनम्रता भी अपार थी। इसके साथ जिस काम को लिया उसका समय पर करना उनकी खासियत थी।
हनुमान जी ज्ञान लेने के लिए सूर्य के पास गए। वो सूर्य को अपना गुरु बनाना चाहते थे। तब सूर्य ने कहा शिक्षा के लिए मुझे रुकना पढ़ेगा जो संभव नहीं है, इससे संसार का चलन बिगड़ जायेगा तुम किसी और को गुरु बना लो। हनुमान जी ने सूर्य को कहा कि आप चलते-चलते ज्ञान दीजिये मैं आपके साथ साथ चलता जाऊंगा और ज्ञान प्राप्त करूँगा। सूर्य इस बात के लिए मान गए इस तरह हनुमान जी ने सूर्य से ज्ञान प्राप्त किया। इस घटना से आप ये बात सीख़ सकते हैं कि जब हमें किसी से कुछ भी सीखना हो या ज्ञान लेना हो तो उसके हिसाब से अपने आप में बदलाव लाएँ।
जब हनुमान जी को लंका जा रहे थे, तब रास्ते में मेनाक पर्वत जो समुद्र के कहने पर ऊपर आया और उसने हनुमान जी से कहा की आप थोड़ा विश्राम कर के चले जाइएगा, हनुमान जी ने मेनाक पर्वत को छुआ और कहा कि मैंने आपकी बात रख ली है परन्तु मुझे जो काम सौंपा गया है वो मेरे विश्राम से कहीं ज़्यादा महत्वपूर्ण है, मैं विश्राम नहीं कर सकता। इस घटना से हमें ये शिक्षा मिलती है कि जब भी हमें काम दिया जाये तो काम की समाप्ति तक विश्राम न किया जाए। हमें काम की सामयिक महत्ता को समझना चाहिए। यही सतत सक्रियता (Proactive ness) है।
जब हनुमान जी मेनाक पर्वत से आगे गए तब उनको सुरसा नाम की राक्षसी ने रोक लिया और हनुमान जी को निगलने के लिए आगे आई। हनुमान जी ने उसे समझाया पर वो न मानी। हनुमान जी ने अपना विशाल रूप धारण कर लिया, सुरसा ने भी अपना मुँह बड़ा कर लिया। जैसे ही उसका मुँह बड़ा किया हनुमान जी ने बिना समय गवायें अपना रूप बहुत छोटा कर लिया और उसके मुँह में जाकर वापिस आ गए। हनुमान जी ने सुरसा से कहा “माँ मैंने आपकी बात को रख लिया है अब मुझे जाने दो” इस बुद्धिमानी से सुरसा प्रसन्न हुईं और हनुमान जी को जाने दिया। यहाँ हनुमान का चातुर्य और विनम्रता गुण काम आता है।
इस घटना में हमने ये सीखा कि कई बार हमें समय खराब और लक्ष्य से भटकाने वाले लोग मिलते हैं जिनको हम प्यार से या बुद्धिमानी से अपने रास्ते से हटा सकते हैं और अपना लक्ष्य पा सकते हैं। कई बार हमें लक्ष्य हासिल करने के लिए कभी-कभी झुकना भी पड़ता है
हनुमान जी लंका में प्रवेश हुए लेकिन लंका बहुत बड़ी थी, हनुमान जी माँ जानकी को ढूंढ़ते थोड़ा निराश हुए और बैठ गए और विचार किया की इतनी दूर मैं निराश और असफल होने के लिए नहीं आया हूँ। उन्होंने प्रभु राम का स्मरण किया और फिर से प्रयास किया और उन जगहों पर गए जहाँ उन्होंने नहीं ढूंढा था। आखिर वो अशोक वाटिका पहुंचे, जहाँ उन्हें माँ सीता मिल गईं।
कई बार हम नई जगह जाते हैं तो वहां हमें कुछ समझ नहीं आ रहा होता है और बार बार प्रयास करने के बावजूद असफल हो रहे होते हैं, लेकिन अगर अपने आप पर पूर्ण विश्वास करके निरंतर प्रयास करते हैं तो आपको सफलता ज़रुर मिलेगी।
जैसे-जैसे ताक़त आती है, सफलता मिलती जाती है तो घमंड अपने आप प्रवेश कर लेता है। हनुमान जी के पास अविश्वसनीय और अनंत शक्तियां थीं। हर काम को वो अपनी ताकत के ज़ोर से बड़ी आसानी से कर सकते थे, लेकिन इसके साथ साथ उनमे बुद्धिमानी और विनम्रता भी थी। जिससे वे साथियों/ अनुयायियों के ईर्षा भाजन न होकर उनके प्रिय होते थे।
आभार प्रदर्शन उपरांत महोत्सव का समापन हुआ। रात्रिभोज करके दूसरे दिन सुबह नौ बजे आंजनेय पर्वत भ्रमण हेतु बस में सवार होने के निर्देश सहित
निंद्रामग्न ही गए। खूब थके थे, खूब अच्छी गाढ़ी नींद ने खूब जल्दी दबोच लिया।
क्रमशः…
© श्री सुरेश पटवा
भोपाल, मध्य प्रदेश
*≈ सम्पादक श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈