श्री यशोवर्धन पाठक
(ई-अभिव्यक्ति में प्रत्येक सोमवार प्रस्तुत है नया साप्ताहिक स्तम्भ कहाँ गए वे लोग के अंतर्गत इतिहास में गुम हो गई विशिष्ट विभूतियों के बारे में अविस्मरणीय एवं ऐतिहासिक जानकारियाँ । इस कड़ी में आज प्रस्तुत है एक बहुआयामी व्यक्तित्व “मंडला, जबलपुर के गौरव रत्न – श्रद्धेय स्व. श्री रामकृष्ण पांडेय” के संदर्भ में अविस्मरणीय ऐतिहासिक जानकारियाँ।)
स्व. श्री रामकृष्ण पांडेय
☆ कहाँ गए वे लोग # ५० ☆
☆ “मंडला, जबलपुर के गौरव रत्न – श्रद्धेय स्व. श्री रामकृष्ण पांडेय” ☆ श्री यशोवर्धन पाठक ☆
तिथियां गिनने न बैठो
उत्थान और पतन की
सच मानो ये घड़ी है
संकल्प और प्रण की
——–
सुप्रसिद्ध कवि स्व. पं. श्रीबाल पांडेय जी की इन काव्य पंक्तियों की सार्थकता सिद्ध करने वाले मंडला के गौरव रत्न स्व. श्री रामकृष्ण जी पांडेय के व्यक्तित्व और कृतित्व के विषय में आज जब मैं कुछ लिखने बैठा हूं तो मैं सोचता हूं कि श्री पांडेय जी ने भी पं. श्रीबाल पांडेय जी की काव्य पंक्तियों के अनुसार उत्थान और पतन के दिन नहीं गिने बल्कि अपनी कर्म निष्ठा के माध्यम से विकास की दिशा तय करने में जीवन पर्यन्त संकल्पबद्ध रहे। सादा जीवन, उच्च विचार के धनी श्री रामकृष्ण पांडेय का जन्म मंडला जिले के ग्रामीण अंचल निवास के भीखमपुर में हुआ था संघर्ष की धूप में तपते हुए उन्होंने कठिनाइयों के बीच मैट्रिक की परीक्षा शानदार अंकों से उत्तीर्ण करते हुए मेरिट में स्थान प्राप्त किया और अपने गांव ही नहीं बल्कि अपने जिले को गौरवान्वित किया था।
इस कामयाबी के बाद तो पांडेय जी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और शिक्षा के क्षेत्र में लगातार आगे बढ़ते रहे। उन्होंने जबलपुर विश्व विद्यालय से एम. ए. की परीक्षा में स्वर्ण पदक प्राप्त करने के बाद महात्मा गांधी के निजी सचिव रहे पूर्व सांसद डा. महेश दत्त मिश्रा के मार्गदर्शन में भारतीय संसदीय प्रणाली पर पी. एच. डी. की उपाधि अर्जित की। यह गौरवशाली सिलसिला यहीं नहीं रुका। पांडेय जी ने इसके बाद इंडियन प्राइम मिनिस्टर थ्योरी एंड प्रेक्टिस पर डी. लिट की उपाधि भी प्राप्त की बाद में उन्होंने प्रधानमंत्री सचिवालय में विशेष राजनैतिक सलाहकार के दायित्व का भी निर्वाह किया। कम्युनिकेशन आफ इंडिया के डायरेक्टर के पद को सुशोभित करने के बाद पांडेय जी आकाशवाणी से श्रोता अनुसंधान अधिकारी के पद से सेवानिवृत्त हुए। उल्लेखनीय बात तो यह है कि सेवानिवृत्त होने के बाद पांडेय जी ने एल. एल. बी. की परीक्षा पास की और वह भी गोल्ड मेडल लेकर। फिर एल. एल. एम. में भी गोल्ड मेडल लिया और फिर छत्तीसगढ़ के रायपुर में सीनियर प्रोड्यूसर का काम करते हुए सफलता पूर्वक वकालत भी की।
पांडेय जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। शिक्षा क्षेत्र में विभिन्न उपाधियां अर्जित करने के साथ ही उन्हें ज्योतिष शास्त्र का भी विशेष ज्ञान था। प्रारंभिक जीवन में उन्होंने जबलपुर के कामता प्रसाद गुरु भाषा भारती संस्थान में असिस्टेंट डायरेक्टर का भी सफलता पूर्वक कार्य किया। पांडेय जी को पत्रकारिता का भी अच्छा अनुभव था। उन्होंने जबलपुर के दैनिक देशबंधु सहित अनेक अखबारों में भी पत्रकारिता कार्य किया और निर्भीक एवं निष्पक्ष पत्रकारिता के सशक्त हस्ताक्षर के रूप में ख्याति अर्जित की।
स्व. श्री पांडेय यूं रिश्ते में तो हमारे फूफाजी हुआ करते थे परंतु उन्होंने इस रिश्ते को तरजीह नहीं दी बल्कि मेरे पिताजी को हमेशा पितृ तुल्य माना और पिताजी के प्रति उनके मन में हमेशा श्रद्धा का भाव रहा। वे कभी कभी अपनी समस्याओं के समाधान के लिए भी पिताजी के पास आते थे और हमेशा चेहरे पर एक सुकून का भाव लेकर लौटते। अपने कार्यक्षेत्र के बारे में पिताजी के साथ जब उनकी गंभीर चर्चा प्रारंभ होती तो समय का पता ही नहीं चलता। हम चारों भाइयों को उन्होंने अपने छोटे भाई जैसा स्नेह दिया। उनके सहज सरल स्वभाव में इतनी बेतकल्लुफी शामिल थी कि हमें उनके मित्र होने की अनुभूति होने लगती। स्व. श्री पांडेय सामाजिक और शैक्षणिक क्षेत्र में कल्याणकारी दृष्टिकोण और परस्पर सहयोग के लिए चर्चित रहे। वे सभी की मदद के लिए हमेशा तैयार रहते थे चाहे वह उनका परिचित हो या अपरिचित । उन्होंने हम लोगों को हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। मेरे एम. ए. करने के बाद एक बार उन्होंने पूछा कि मैं आजकल क्या कर रहा हूं। मैंने कहा, अभी तो कुछ नहीं। उस समय पांडेय जी जबलपुर में आकाशवाणी में श्रोता अनुसंधान अधिकारी थे। उन्होंने मुझसे रेडियो स्टेशन में मिलने को कहा। जब मैं उनसे जाकर मिला तो उन्होंने मुझसे मानदेय पर एशियाड ८२ के अंतर्गत सर्वे का काम सौंप दिया और यही नहीं उस समय पांडेय जी के अधीनस्थ लगभग ४० बेरोजगार युवक काम रहे थे। सर्वे कार्य के बाद जब हम सभी को मानदेय की इकठ्ठी राशि मिली तो हमारी खुशी देखते ही बनती थी।
श्रद्धेय पांडेय जी के साथ बिताया गया समय हमारे स्मृति कोष की अमूल्य धरोहर है। साहित्यिक गतिविधियों में भी श्री पांडेय जी हमें हमेशा प्रोत्साहित करते थे। उनका प्रोत्साहन और मार्गदर्शन मेरे लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हुआ करता। एक बार एक काव्य गोष्ठी में काव्य पाठ के पूर्व ही उन्होंने मुझे एक विशेष कविता पढ़ने का संकेत। दिया। शायद यह कविता उनके नजरिए से सामयिक और महत्वपूर्ण रही हो। आदरणीय डा. राजकुमार सुमित्र जी और आदरणीय डा. रामकृष्ण जी पांडेय के आतिथ्य में आयोजित उस काव्य गोष्ठी में मैंने वह कविता मैं अंधा ही अच्छा हूं, सुनाई और वह कविता सराही भी गयी।
पांडेय जी आज हमारे बीच नहीं है लेकिन उनकी यादें हमारे दिल और दिमाग में सदा उनके हमारे आस पास होने का अहसास दिलाती है –
आदमी के, प्यार के,
संघर्ष के जो गीत गाये
जियेंगी सदियां उन्हें
दिन रात छाती से लगाये।
© श्री यशोवर्धन पाठक
संकलन – श्री प्रतुल श्रीवास्तव
संपर्क – 473, टीचर्स कालोनी, दीक्षितपुरा, जबलपुर – पिन – 482002 मो. 9425153629
☆ ☆ ☆ ☆
आप गत अंकों में प्रकाशित विभूतियों की जानकारियों के बारे में निम्न लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं –
हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ३ ☆ यादों में सुमित्र जी ☆ श्री यशोवर्धन पाठक ☆
हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ४ ☆ गुरुभक्त: कालीबाई ☆ सुश्री बसन्ती पवांर ☆
हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # ६ ☆ “जन संत : विद्यासागर” ☆ श्री अभिमन्यु जैन ☆
हिन्दी साहित्य – साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कहाँ गए वे लोग # १६ – “औघड़ स्वाभाव वाले प्यारे भगवती प्रसाद पाठक” ☆ श्री जय प्रकाश पाण्डेय ☆
☆ ☆ ☆ ☆
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈