श्री जय प्रकाश पाण्डेय
(श्री जयप्रकाश पाण्डेय जी की पहचान भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी के अतिरिक्त एक वरिष्ठ साहित्यकार की है। वे साहित्य की विभिन्न विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं। उनके व्यंग्य रचनाओं पर स्व. हरीशंकर परसाईं जी के साहित्य का असर देखने को मिलता है। परसाईं जी का सानिध्य उनके जीवन के अविस्मरणीय अनमोल क्षणों में से हैं, जिन्हें उन्होने अपने हृदय एवं साहित्य में सँजो रखा है । प्रस्तुत है साप्ताहिक स्तम्भ की अगली कड़ी में उनकी सामजिक एवं प्रशासनिक प्रणाली पर काफी कुछ कहता एक व्यंग्य “संशय” । आप प्रत्येक सोमवार उनके साहित्य की विभिन्न विधाओं की रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे ।)
☆ जय प्रकाश पाण्डेय का सार्थक साहित्य # 44 ☆
☆ व्यंग्य – संशय ☆
सुंदरपुर अब बड़े कस्बे से छोटे शहर में तब्दील हो गया था। सुंदरपुर के सबसे बड़े अमीर सेठ मानिक लाल के यहां चोरी हो गई। स्थानीय अखबार ने इस बड़ी चोरी में पुलिस के आदमी का हाथ होना बताया। रामदीन ने अखबार में सुबह-सुबह पढ़ा। पुलिस वालों में उत्सुकता हो गई कि बड़े सेठ के यहां किस पुलिस वाले ने लम्बा हाथ मार दिया। रामदीन की एक साल पहले ही पुलिस में नौकरी लगी थी, ईमानदार टाइप का भी था और डरपोंक, सीधा सादा। हालांकि रामदीन पोस्ट ग्रेजुएट था पर गरीबी रेखा के नीचे का आदमी था इसलिए सुंदरपुर थाने में उसे कुत्ता संभालने की ड्यूटी दी गई। जब कहीं चोरी होती तो रामदीन कुत्ते की चैन पकड़ कर कुत्ते के साथ भागता, दौड़ता, रुकता, कुत्ते के नखरे के अनुसार वह इमानदारी से ड्यूटी करता।
सेठ मानिक लाल के यहां की चोरी में लोग पुलिस वाले पर शक कर रहे थे तो वह थाने से कुत्ते को लेकर निकला। पीछे पीछे उसके बड़े साहब लोग जीप से चल रहे थे। दौड़ते – दौड़ते एक जगह वह पुलिस का काला कुत्ता रुक जाता है। रामदीन चारों ओर देखता है दूर दूर तक कहीं कोई नहीं दिखता पीछे से आते पुलिस के साहबों का कुनबा जरुर दिखता है। रामदीन चौकन्ना हो जाता है पास में एक कुतिया कूं कूं करती खड़ी दिखती है। कुत्ता सोचता है – क्या कमसिन कुतिया है? कुत्ते को देखकर कुतिया भी सोचती है – कितना बांका कुत्ता है।
रामदीन सचेत होकर कुत्ते को घसीटते हुए आगे बढ़ने का प्रयास करता है परन्तु कुत्ता ड्यूटी के नियमों को ताक पर रखकर रामदीन को पीछे घसीटने लगता है और गुस्से में रामदीन के चक्कर लगा लगाकर भौंकने लगता है। रामदीन डर जाता है सोचता है बड़ी मुश्किल से तो नौकरी लगी थी और ये कुत्ता नाराज होकर अपनी ड्यूटी भूल गया है। कहां से बीच में ये कुतिया आ गई। रुक कर रामदीन को लगातार भोंकते कुत्ते को देखकर साहबों ने रामदीन को पकड़ कर हथकड़ी डाल दी। रामदीन बहुत रोया, गिड़गिड़ाता रहा कि सर चोरी नहीं की, ये कुत्ता आवेश में आकर मुझसे बदला ले रहा है। थोड़ी देर के लिए इसका दिमाग भटक गया था, ये चाहता था कि थोड़ी देर के लिए उसे छोड़ दिया जाय पर मैंने देशभक्ति और जनसेवा को आदर्श मानकर इसको अनुशासन का पाठ सिखाया इसीलिए ये नाराज होकर मुझ पर भौंकने लगा।
साहब ने एक न माना बोला – कुत्ते ने आपको पकड़ा, आपके चारों ओर चक्कर लगा लगा कर भौंका, इसलिए “अवर डिसीजन इज फाइनल।”
दूसरे दिन अखबार में चोरी के इल्ज़ाम में रामदीन की कुत्ता पकडे़ शानदार तस्वीर छपी थी। अखबार की भविष्यवाणी सही थी….
© जय प्रकाश पाण्डेय
गजब का चित्रण है आज के पुलिस और प्रशासन में व्याप्त मूर्खता और लकीर के फकीरपन का।
बधाई अच्छे व्यंग्य के लिए