श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. आप डाक विभाग से सेवानिवृत्त हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में आज प्रस्तुत है आपके – आतंक पर दोहे… । आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 255 ☆
☆ आतंक पर दोहे… ☆ श्री संतोष नेमा ☆
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मानवता मरती गई, जिंदा बस आतंक
जिनके मन की क्रूरता, खूब मारती डंक
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बच्चे, बूढ़े, नौजवां, महिला बनीं शिकार
नफ़रत की इस जंग में, प्रेम बड़ा लाचार
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नफ़रत, हिंसा ईर्ष्या, नहीं सिखाता धर्म
जिनके मन आतंक हो, उनके खोटे कर्म
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जिनके मन बस विकृति हो, वे आतंकी लोग
निर्दोषों को मारते, लगा खून का रोग
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मानवता की लास पर, करते जो नित नृत्य
उनको क्या जन्नत मिले, जिनके हिंसक कृत्य
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अपने खोटे करम पर, करते वही गुरुर
जिनके हिय न दीन-धरम, रहें अहम में चूर
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हेती या अल्कायदा, हिजबुल्लाह हमास
सब आतंकी संगठन, करते सभी बिनास
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अपने अपने अहम के, होते सभी शिकार
इनको कब संतोष हो, मन में रखें विकार
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© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
वरिष्ठ लेखक एवं साहित्यकार
आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.) मो 7000361983, 9300101799
≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈