सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
(संस्कारधानी जबलपुर की सुप्रसिद्ध साहित्यकार सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ ‘जी सेवा निवृत्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश, डिविजनल विजिलेंस कमेटी जबलपुर की पूर्व चेअर पर्सन हैं। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में पंचतंत्र में नारी, पंख पसारे पंछी, निहिरा (गीत संग्रह) एहसास के मोती, ख़याल -ए-मीना (ग़ज़ल संग्रह), मीना के सवैया (सवैया संग्रह) नैनिका (कुण्डलिया संग्रह) हैं। आप कई साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित हैं। आप प्रत्येक शुक्रवार सुश्री मीना भट्ट सिद्धार्थ जी की अप्रतिम रचनाओं को उनके साप्ताहिक स्तम्भ – रचना संसार के अंतर्गत आत्मसात कर सकेंगे। आज इस कड़ी में प्रस्तुत है आपकी एक अप्रतिम गीत – सोने की चिड़िया…।
रचना संसार # 46 – गीत – सोने की चिड़िया… ☆ सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
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सोने की चिड़िया के घर में
डेरा डाले हैं फाँकें,
संकट की बेला में कैसे,
जीवन की गाड़ी हाँकें।
साथ नहीं कोई देता है,
बस ताने ही कसते हैं,
कच्चे धागों के ये रिश्ते,
नित नागिन सा डसते हैं,
पश्चिम की इस चकाचौंध में,
कैसे तन को अब ढाँकें।
मँहगाई सिर चढ़ कर बोली,
लोग ठहाके हैं मारे,
घोर गरीबी की क्रंदन से,
अधर मौन हैं बेचारे,
कौड़ी-कौड़ी को तरसे हैं,
किसकी अब कीमत आँकें।
तृष्णाओं की सरिता बहती,
छलिया करते हैं घातें।
विपदाओं की बाढें आतीं,
काल अमावश की रातें।।
चले कुल्हाड़ी वन -उपवन पर,
अंग-भंग सब क्या टाँकें।
आशाओं की बंद खिड़कियाँ,
आश्वासन भी बौराते।
चली हवाएँ हैं अभिमानी,
कुटिल कुहासे चौंकाते।।
सच्चाई की राह अकेली,
टूटा दर्पण क्या झाँकें।
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© सुश्री मीना भट्ट ‘सिद्धार्थ’
(सेवा निवृत्त जिला न्यायाधीश)
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