आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

(आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ जी संस्कारधानी जबलपुर के सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं। आपको आपकी बुआ श्री महीयसी महादेवी वर्मा जी से साहित्यिक विधा विरासत में प्राप्त हुई है । आपके द्वारा रचित साहित्य में प्रमुख हैं पुस्तकें- कलम के देव, लोकतंत्र का मकबरा, मीत मेरे, भूकंप के साथ जीना सीखें, समय्जयी साहित्यकार भगवत प्रसाद मिश्रा ‘नियाज़’, काल है संक्रांति का, सड़क पर आदि।  संपादन -८ पुस्तकें ६ पत्रिकाएँ अनेक संकलन। आप प्रत्येक सप्ताह रविवार को  “साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह” के अंतर्गत आपकी रचनाएँ आत्मसात कर सकेंगे। आज प्रस्तुत है आपकी एक कविता – नदी काव्य…)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – सलिल प्रवाह # 232 ☆

☆ नदी काव्य… ☆ आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’ ☆

स्वर्ण रेखा!

अब न हो निराश,

रही तट पर गूँज

आप आ गीता।

काश,

फिर मंगल

कर सके जंगल,

पा पुन: सीता।

अवध

और रजक

गँवा निष्ठा सत

मलिन कर सरयू

गँवा देते राम।

नदी मैया है

जमुन जल राधा,

काट भव बाधा

कान्ह को कर कृष्ण

युग बदलता है।

बीन कर कचरा

रोप पौधा एक

बना उसको वृक्ष

उगा फिर सूरज

हो न जो बीता।

सुन-सुना गीता।।

(स्वर्ण रेखा = एक नदी)

©  आचार्य संजीव वर्मा ‘सलिल’

१.२.२०२५

संपर्क: विश्ववाणी हिंदी संस्थान, ४०१ विजय अपार्टमेंट, नेपियर टाउन, जबलपुर ४८२००१,

चलभाष: ९४२५१८३२४४  ईमेल: salil.sanjiv@gmail.com

 संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ ≈

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