(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का एक समसामयिक सार्थक व्यंग्य “अप्रत्यक्ष दानी शराबी”। श्री विवेक जी का यह व्यंग्य सत्य के धरातल पर बिलकुल खरा उतरता है। श्री विवेक जी की लेखनी को इस अतिसुन्दर व्यंग्य के लिए नमन । )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक साहित्य # 45 ☆
☆ अप्रत्यक्ष दानी शराबी ☆
देश ही नही, दुनियां घनघोर कोविड संकट से ग्रस्त है.सरकारो के पास धन की कमी आ गई है. पाकिस्तान तो दुनिया से खुले आम मदद मांग रहा है,” दे कोविड के नाम तुझको करोना बख्शे”. अनुमान लगाये जा रहे हैं कि शायद करोना काल के बाद केवल चीन और भारत की इकानामी कुछ बचेंगी, बाकी सारे देशो की अर्थव्यवस्था तो कंगाल हो रही है. महाशक्ति अमेरिका तक की जी डी पी ग्रोथ माईनस में जाती दिख रही है. ऐसे संकट काल में हमारे देश में भी सरकार ने जनता से पी एम केयर फंड में मदद के लिये आव्हान किया है. दानं वीरस्य भूषणम्. अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत करते हुये सांसदो, विधायको ने अपने वेतन में कटौती कर ली है. सरकारी कर्मचारियो ने अपना एक दिन का वेतन स्वेच्छा से दान दे दिया है. सरकार ने कर्मचारियों के मंहगाई भत्ते की वृद्धि पर रोक लगाकर उसे अगले वर्ष जुलाई तक फ्रीज कर दिया है. अनेक सामाजिक संस्थाओ, मंदिरों, गुरुद्वारो के द्वारा लंगर चलाये जा रहे हैं. सहयोग से ही इस अप्रत्याशित विपदा का मुकाबला किया जा सकता है. जन मानस के मन में घरों में बंद रहते करुणा के भाव जाग रहे हैं. अच्छा है.
मीडिया प्रेमी ऐसे दान वीर भी सामने आये जिनने किलो भर चावल दिया और भीड़ एकत्रित कर अपने चमचों सहित हर एंगिल से पूरा फोटो सेशन ही करवा डाला. दूसरे ही दिन नगर समाचार के पन्नो पर प्रत्येक अखबार में ये दान वीर सचित्र विराजमान रहे. फेसबुक और व्हाट्सअप पर उनकी विज्ञप्तियां अलग प्रसारित होती रहीं. दरअसल ऐसे लोगों के लिये संकट की इस घड़ी में मदद का यह प्रयास भी उनके कैरियर के लिये निवेश मात्र था. जो भी हो मुझे तो इसी बात की प्रसन्नता है कि किसी बहाने ही सही जरूरतमंदो तक छोटी बड़ी कुछ मदद पहुंची तो. एक सज्जन रात दो बजे एक गरीब बस्ती में गाड़ी लेकर पहुंचे, एनाउंस किया गया कि जरूरत मंदो को प्रति व्यक्ति एक किलो आटे का पैकेट दिया जावेगा, जिन्हें चाहिये आकर ले जावें. अब स्वाभाविक था रात दो बजे अधनींद में वही व्यंक्ति एक किलो आटा लेने जावेगा, जिसे सचमुच आवश्यकता होगी, कुछ लोग जाकर आटे के पैकेट ले आये. सुबह जब उन्होने उपयोग के लिये आटा खोला तो हर पैकेट में १५ हजार रु नगद भी थे. गरीबों ने देने वाले को आषीश दिये. सच है गुप्त दान महादान. बायें हाथ को भी दाहिने हाथ से किये दान का पता न चले वही तो सच्चा दान कहा गया है.
एक बुजुर्ग कोविड की बीमारी से ठीक होकर अस्पताल से बिदा हो रहे थे, डाक्टर्स, नर्सेज उन्हें चियर अप कर रहे थे. तभी उन्हें लगाये गये आक्सीजन का बिल दिया गया, उनके उपचार में उन्हें एक दिन सिलेंडर से आक्सीजन दी गई थी. पांच हजार का बिल देखकर वे भावुक हो रोने लगे, अस्पताल के स्टाफ ने कारण जानना चाहा तो उन्होने कहा कि जब एक दिन की मेरी सांसो का बिल पांच हजार होता है तो मैं भला उस प्रकृति को बिल कैसे चुका सकता हूं जिसके स्वच्छ वातावरण में मैं बरसों से सांसे ले रहा हूं. हम सब प्रकृति से अप्रत्यक्ष रूप से जाने कब से जाने कितना ले रहे हैं.
मेरा मानना है कि सबसे बड़ा दान अप्रत्यक्ष दान ही होता है. और टैक्स के द्वारा हम सबसे सरकारें भरपूर अप्रत्यक्ष दान लेती हैं . टैक्सेशन का आदर्श सिद्धांत ही है कि जनता से वसूली इस तरह की जावे जैसे सूरज जलाशयों से भाप सोख लेता है, और फिर सरकारो का आदर्श काम होता है कि बादल की तरह उस सोखे गये जल को सबमें बराबरी से बरसा दे. मेरे आपके जैसे लोग भले ही केवल ठेठ जरूरत के सामान खरीदते हैं, पर अप्रत्यक्ष दान के मामले में हमारे शराबी भाई हम सबसे कहीं बड़े दानी होते हैं.शराब पर, सिगरेट पर सामान्य वस्तुओ की अपेक्षा टैक्स की दरें कही बहुत अधिक होती ही हैं. फिर दो चार पैग लगाते ही शराबी वैसे भी दिलेर बन जाता है. परिचित, अपरिचित हर किसी की मदद को तैयार रहता है. वह खुद से ऊपर उठकर खुदा के निकट पहुंच जाता है. इसलिये मेरा मानना है कि सबसे बड़े अप्रत्यक्ष दानी शराबी ही होते हैं. उनका दान गुप्त होता है. और इस तर्क के आधार पर मेरी सरकार से मांग है कि लाकडाउन में बंद शराब की दुकानों को तुरंत खोला जावे जिससे हमारे शराबी मित्र राष्ट्रीय विपदा की इस घड़ी में अपना गुप्त दान खुले मन से दे सकें.
© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर
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