सौ. सुजाता काळे

(सौ. सुजाता काळे जी  मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगनी से ताल्लुक रखती हैं।  उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है  सौ. सुजाता काळे जी  द्वारा  प्रकृति के आँचल में लिखी हुई एक अतिसुन्दर भावप्रवण  कविता  “ नीलमोहर ”। सुश्री सुजाता जी के आगामी साप्ताहिक  स्तम्भ में अमलतास पर अतिसुन्दर रचना साझा करेंगे।  )

 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 37 ☆

 नीलमोहर

नील गगन से

यह नीलमोहर

जाने क्या क्या

बात करें ।

आसमान को

अपना रंग देकर

फिर आकर

धरती से मिले।

शाखाओं पर

आसमान ही

लेकर अपने

साथ चले।

फिर क्यों धूल में

नीलाभ बनकर

धरती पर आँचल

ओढ़ चले।

 

© सुजाता काळे

पंचगनी, महाराष्ट्र, मोबाईल 9975577684

[email protected]

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