श्री शांतिलाल जैन 

(आदरणीय अग्रज एवं वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री शांतिलाल जैन जी विगत दो  दशक से भी अधिक समय से व्यंग्य विधा के सशक्त हस्ताक्षर हैं। आपकी पुस्तक  ‘न जाना इस देश’ को साहित्य अकादमी के राजेंद्र अनुरागी पुरस्कार से नवाजा गया है। इसके अतिरिक्त आप कई ख्यातिनाम पुरस्कारों से अलंकृत किए गए हैं। इनमें हरिकृष्ण तेलंग स्मृति सम्मान एवं डॉ ज्ञान चतुर्वेदी पुरस्कार प्रमुख हैं। श्री शांतिलाल जैन जी  के  साप्ताहिक स्तम्भ – शेष कुशल  में आज प्रस्तुत है उनका एक सकारात्मक सार्थक, एवं बच्चों की परवरिश पर आधारित विचारणीय व्यंग्य “लॉकर से प्रशस्त होती लॉकर-रूम की राह ।  इस  साप्ताहिक स्तम्भ के माध्यम से हम आपसे उनके सर्वोत्कृष्ट व्यंग्य साझा करने का प्रयास करते रहते हैं । श्री शांतिलाल जैन जी के व्यंग्य में वर्णित सारी घटनाएं और सभी पात्र काल्पनिक होते हैं ।यदि किसी व्यक्ति से इसकी समानता होती है, तो उसे मात्र एक संयोग कहा जाएगा। हमारा विनम्र अनुरोध है कि श्री शांतिलाल जैन जी के प्रत्येक व्यंग्य  को हिंदी साहित्य की व्यंग्य विधा की गंभीरता  को समझते हुए सकारात्मक दृष्टिकोण से आत्मसात करें। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – शेष कुशल #4 ☆

☆ लॉकर से प्रशस्त होती लॉकर-रूम की राह

 

“प्रणाम गुरुवर. बिना किसी पूर्व सूचना के अचानक कैसे आगमन हुआ आपका ?” – सेठश्री धनराज ने अट्टालिका में असमय पधारे गुरुजी से पूछा.

“क्षमा करें श्रेष्ठीवर्य. मुझे आपके सुकुमार के बारे में कुछ आवश्यक चर्चा करना है.”

“कहिये गुरुवर.”  – उनकी आवाज़ में रूखी औपचारिकता थी.

“आपको तो पता ही है, सुकुमार युवावस्था की दहलीज़ पर खड़े हैं. इस समय उनका अध्ययन से ध्यान भटकना अनुचित है.”

जिस प्रसंग की ओर गुरुजी संकेत कर रहे थे वो सेठश्री की जानकारी में पहले ही आ चुका था. नगर कोतवाल ने बताया ही था. कोतवाल भरोसेमंद आदमी है. उसे शीशे में उतार लिया गया है. लेकिन इस गुरु का कुछ करना पड़ेगा. उन्होंने सोचा पहले इसे कह लेने देते हैं, फिर देखते हैं – “विस्तार से बतायें गुरुवर.”

“इन दिनों सुकुमार अशोभनीय कार्यों में लिप्त रहने लगे हैं. वे अपने सहपाठी मित्रों के साथ कामक्रीड़ा सम्बन्धी चर्चा करते हैं. जैसे, अनावृत्त युवतियाँ कैसी दिखती हैं, उनके साथ संसर्ग कैसे किया जा सकता है, संसर्ग-प्रसंग की फेंटेसी साझा करते हैं. जबकि, अभी तो उनकी मसें पूरी तरह भीगी भी नहीं है.”

“मसें भीगने की समस्या है…..ओके. वो हम भिगवा देंगे.”

“नहीं नहीं श्रीमन्, तात्पर्य यह कि किशोर अवस्था में ही उन्होंने रति सुख की चर्चा का आनंद पाने के लिये लॉकर-रूम का निर्माण किया है.”

“बेवकूफ है वो. हमारे यहाँ हर कमरे में लॉकर हैं, फिर लॉकर के लिये नया रूम क्यों बनाना. मैं बात करूंगा उससे.” – अंजान दिखने का छद्म भाव चेहरे पर लाते हुवे उन्होंने कहा.

“वैसा नहीं श्रीमन्, वर्चुअल लॉकर. जिस पर वे सहपाठी कन्याओं को संसर्ग करने का प्रस्ताव देते हैं. जो कन्यायें उनके दबाव के आगे समर्पण नहीं करतीं उन्हें फूहड़ और आवारा करार देते हैं, उनकी तस्वीरें निर्वस्त्र तस्वीरों में मिलाकर सार्वजानिक करने की धमकी देने लगते हैं. चिंता का गहरा पक्ष तो यह उभर कर आया कि सुकुमार सहपाठियों के साथ मिलकर किसी कन्या से बलात् संसर्ग करने की योजना पर पिछले दिनों कार्य कर रहे थे.”

अब सेठश्री ने मन ही मन धृतराष्ट्र का स्मरण किया, और बोले – “सुकुमार ने तो सिर्फ चर्चा भर की है, बलात् संसर्ग किया तो नहीं. अपराध तो तब न माना जायेगा जब वे सचमुच ऐसा कर गुजरें. वह भी तब जबकि वे पीछे सबूत छोड़ने की गलती करें. आप अनावश्यक चिंतित न हों गुरुवर, अभी हमारे लॉकर लबालब भरे हैं.”

“मैं तो नैतिक शिक्षा की बात कर रहा था.”

“सो तो आपने बचपन में पठा दी. उसका पारिश्रमिक आपको मिल चुका. अब भूल जाईये. युवावस्था आनंद का समय है. प्लेजर सुकुमार का पर्सनल राईट है.”

“हे महाभाग, कन्याओं के माता पिता ने नगर कोतवाल से शिकायत भी की है.”

“उसका बंदोबस्त हमने कर लिया है. इतना रसूख तो जेब में धर के चलते हैं हम. बताईये, सुकुमार या उसके किसी साथी का मिडिया में कहीं नाम आ पाया क्या ? स्कूल का नाम किसी को पता चला क्या ? सिस्टम हमारे लॉकर में बंद एक  आइटम है.”

“सो तो है श्रीमन्, लेकिन स्कूल के प्रसाधन कक्षों में सुकुमार के धूम्रपान करने की पुष्टि हुई है. प्राप्त जानकारी के अनुसार वे कभी कभी मद भी ग्रहण करते हैं.”

“गुरूवर, आपकी परेशानी ये है कि आप अपनी मिडिल क्लास मानसिकता से बाहर नहीं आ पा रहे. अमीरों-उमरावों का आनंद आपसे देखा नहीं जाता. स्कूल गर्ल को मलयाली मूवी में आँख मारते नहीं देखा आपने ? फिलवक्त, आपके पेट में दर्द का कोई उचित कारण नहीं जान पड़ता.”

“क्या कहूं महाभाग, वे विद्यालय की शिक्षिकाओं के बॉडी पार्ट्स बारे में भी अशोभनीय बातें करते हैं, सो आपके पास चला आया.”

“मॉडर्न सोसायटी से सामंजस्य बैठाईये गुरुवर. तार्किक मानव विचार का दौर समाप्त हुआ. ये वर्जनाओं के टूटने का दौर है, ये उपभोग का दौर है, मस्ती का दौर है, आनंद का दौर है. सुकुमार इस उम्र में एन्जॉय नहीं करेंगे तो कब करेंगे.”

“जैसा आप उचित समझें श्रीमन्, लेकिन नारी सम्मान एक महत्वपूर्ण विषय है. ये सिर्फ सुकुमार के लॉकर रूम की बात नहीं है,”

“गुरुवर, हम आपका आदर करते हैं, लेकिन घूमफिर कर आप बार बार सुकुमार के विरूद्ध आयं-बायं बोलने लगते हैं. हमने उन्हें कितना डोनेशन देकर आपके फाइव स्टार स्कूल में प्रवेश दिलवाया है. सुकुमार फ़्लूएंट इंग्लिश स्पीकिंग बॉय है. कमाल है, आप उनमें और हिंदी बोलने वाले देहाती लड़कों में फर्क नहीं कर पाते.”

“जी, लेकिन…”

“बहुत हुआ गुरुवर, आप अपनी नौकरी बचाने की चिंता करिये. परिवार का पालन-पोषण करिये और इस प्रकरण को यहीं भूल जाईये. शेष हम देख लेंगे….. और हाँ, अगर आपके लिये इसे भूल पाना संभव न हो तो हम स्कूल प्रबंधन से आपके एक्जिट लेटर का प्रबंध करने को कह देते हैं…. खड़े क्यों हैं ? अब जाईये भी.”

धृतराष्ट्र के बारे में गुरुजी अब तक कक्षाओं में पढ़ाते रहे, आज मुलाकात भी हो गई. और गांधारी मॉम ? वो भी तो खड़ीं थी सेठश्री के पीछे – आँखों पर पट्टी बांधे, सिले होंठ के साथ. आँखों में निष्कासन का तैरता भय लिये गुरूजी अब निज घर के रास्ते पर हैं.

 

© शांतिलाल जैन 

F-13, आइवरी ब्लॉक, प्लेटिनम पार्क, माता मंदिर के पास, टी टी नगर, भोपाल. 462003.

मोबाइल: 9425019837

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments