श्री संजय भारद्वाज

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली कड़ी। ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆  संजय उवाच # 214 दिव्यता ?

घटना दस-बारह वर्ष पूर्व की है। भाषा, संस्कृति और सेवा के लिए कार्यरत हमारी संस्था हिंदी आंदोलन परिवार, समाज के अलग-अलग वर्ग के लिए विशेष आयोजन करती रहती है। इसी संदर्भ में हम नेत्रहीन बालिकाओं की एक निवासी पाठशाला में पहुँचे। यहाँ पहली से दसवीं तक की कक्षाएँ लगती हैं। लगभग 150 की क्षमता वाली इस पाठशाला की सभी बालिकाओं के लिए हम उपहारस्वरूप स्कार्फ खरीदकर ले गए थे। पाठशाला के मैदान में  पाँचवीं और छठी कक्षा की छात्राओं के लिए स्कार्फ का वितरण हो रहा था। मेरी धर्मपत्नी ने थैले से स्कार्फ निकालकर एक छात्रा के हाथ में  दिया। आश्चर्य! उस बिटिया ने स्कार्फ लेकर उसे सूंघा, फिर बोली, “यह रंग मुझे अच्छा नहीं लगता। इसे बदलकर गुलाबी रंग का स्कार्फ दीजिए ना!” हमारे रोंगटे खड़े हो गए। नेत्रों से जलधारा बह निकली। जन्मांध बच्ची को स्कार्फ के रंग का बोध कैसे हुआ? बड़ा प्रश्न है कि इस बच्ची के लिए रंग की परिभाषा क्या होती होगी? रंग को लेकर उसके मन में कैसी भावनाएँ उठती होंगी?

इस संदर्भ में अपनी एक कविता  की कुछ पंक्तियाँ स्मरण हो आईं,

आँखें, जिन्होंने देखे नहीं कभी उजाले,

कैसे बुनती होंगी आकृतियाँ-

भवन, झोपड़ी, सड़क, फुटपाथ,

कार, दुपहिया, चूल्हा, आग,

बादल, बारिश, पेड़, घास,

धरती, आकाश

दैहिक या प्राकृतिक सौंदर्य की,

‘रंग’ शब्द से कौनसे चित्र बनते होंगे

मन के दृष्टिपटल पर,

भूकंप से  कैसा विनाश चितरता होगा,

बाढ़ की परिभाषा क्या होगी,

इंजेक्शन लगने से पूर्व

भय से आँखें मूँदने का विकल्प क्या होगा,

आवाज़ को घटना में बदलने का

पैमाना क्या होगा,

चूल्हे की आँच और चिता की आग में

अंतर कैसे खोजा जाता होगा,

दृश्य या अदृश्य का

सिद्धांत कैसे समझा जाता होगा..?

बिना आँख के दृश्य और अदृश्य के इस बोध को अध्यात्म छठी इंद्रिय की प्रबलता कहता है। किसी एक इंद्रिय के निर्बल या निष्क्रिय होने की स्थिति में आंतरिक ऊर्जा का सक्रिय होना ही छठी इंद्रिय की प्रबलता का द्योतक है। भारत के प्रधानमंत्री ने इस प्रबलता के अधिष्ठाता का सटीक नामकरण ‘दिव्यांग’ किया है।

स्कार्फ के रंग को पहचाना, अपनी पसंद के रंग का स्कार्फ मांगना, उस बिटिया के भीतर की दिव्यता थी।

विशेष बात है कि यह दिव्यता हम सब में भी विद्यमान है। ध्यान, प्राणायाम, स्वाध्याय, चिंतन, सत्संग, विद्वानों से चर्चा के माध्यम से इसे जाग्रत किया जा सकता है। बहुत कुछ है जिसे देखा जा सकता है, समझा जा सकता है।

अर्जुन ने परमात्मा के विराट का दर्शन किया था। आत्मा अंश है परमात्मा का। इसका अर्थ है कि विराट का एक संस्करण हम सब में भी विद्यमान है, अंतर्निहित है। इस अंतर्निहित को, योगेश्वर कुछ यूँ समझाते हैं,

इहैकस्थं जगत्कृत्स्नं पश्याद्य सचराचरम् ।मम देहे गुडाकेश यच्चान्यद्द्रष्टुमिच्छसि ॥ ७ ॥

अर्थात ‘हे गुडाकेश ! अब इस मेरे शरीर में एक स्थान पर स्थित हुए चराचर सहित सम्पूर्ण जगत को देखो तथा और भी जो कुछ तुम देखना चाहते हो, उसे भी देखो।’

निद्रा को  जीत चुके व्यक्ति को गुडाकेश कहते हैं। संकेत स्पष्ट है। दृष्टि की दिव्यता को सक्रिय करो, विराट रूप दर्शन संभव है।

उस विराट को जानने की यात्रा अपने विराट को पहचानने से होती है। अपनी दिव्यता की अनुभूति इसका आरंभ बिंदु हो सकता है।

… शुभं अस्तु।

© संजय भारद्वाज 

अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय संपादक– हम लोग पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆   ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

संजयउवाच@डाटामेल.भारत

[email protected]

☆ आपदां अपहर्तारं ☆

नवरात्रि साधना के लिए मंत्र है –

या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता,

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

🕉️ 💥 देवीमंत्र की कम से कम एक माला हर साधक करे। अपेक्षित है कि नवरात्रि साधना में साधक हर प्रकार के व्यसन से दूर रहे, शाकाहार एवं ब्रह्मचर्य का पालन करे। सदा की भाँति आत्म-परिष्कार तथा ध्यानसाधना तो चलेंगी ही। मंगल भव। 💥 🕉️

अनुरोध है कि आप स्वयं तो यह प्रयास करें ही साथ ही, इच्छुक मित्रों /परिवार के सदस्यों  को भी प्रेरित करने का प्रयास कर सकते हैं। समय समय पर निर्देशित मंत्र की इच्छानुसार आप जितनी भी माला जप  करना चाहें अपनी सुविधानुसार कर सकते हैं ।यह जप /साधना अपने अपने घरों में अपनी सुविधानुसार की जा सकती है।ऐसा कर हम निश्चित ही सम्पूर्ण मानवता के साथ भूमंडल में सकारात्मक ऊर्जा के संचरण में सहभागी होंगे। इस सन्दर्भ में विस्तृत जानकारी के लिए आप श्री संजय भारद्वाज जी से संपर्क कर सकते हैं। 

≈ संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
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