(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ” में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है। उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का मानहानि के मुकदमों के अंजाम पर आधारित एक अतिसुन्दरव्यंग्य “मानहानि का मुकदमा यानी फेसवाश ”। श्री विवेक जी ने उस मानहानि का भी जिक्र किया है जो पारिवारिक होती हैं और कदाचित वैसे ही रफा दफा हो जाती हैं जैसी ….. . श्री विवेक जी की लेखनी को इस अतिसुन्दर व्यंग्य के लिए नमन । )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक साहित्य # 51 ☆
☆ व्यंग्य – मानहानि का मुकदमा यानी फेसवाश ☆
व्यंग के हर पंच पर किसी न किसी की मानहानि ही की जाती है, ये और बात है कि सामने वाला उसका नोटिस लेता है या नही, और व्यंगकार को मानहानि का नोटिस भेजता है या नही. व्यंगकार अपनी बात का सार्वजनिककरण इनडायरेक्ट टेंस में कुछ इस तरह करता है कि सामने वाला टेंशन में तो होता है पर मुस्करा कर टालने के सिवाय उसके पास दूसरा चारा नहीं होता.लेकिन जब बात सीधी टक्ककर की ही हो जाये तो मानहानि का मुकदमा बड़े काम आता है. सार्वजनिक जीवन में स्वयं को बहुचर्चित व अति लोकप्रिय होने का भ्रम पाले हुये किसी शख्सियत को जब कोई सीधे ही मुंह पर कालिख मल जाये तो तुरंत डैमेज कंट्रोल में, बतौर फेसवाश मानहानि का मुकदमा किया जाता है. जब समय के साथ मुकदमें की पेशी दर पेशी, मुंह की कालिख कुछ कम हो जाये, लोग मामला भूल जायें तो आउट आफ कोर्ट माफी वगैरह के साथ मामला सैट राइट हो ही जाता है. लेकिन यह तय है कि रातो रात शोहरत पाने के रामबाण नुस्खों में से एक है मानहानि के मुकदमें में किसी पक्ष का हिस्सा बन सकना. मैं भी बड़े दिनो से लगा हुआ हूं कि कोई तो मुझे मानहानि का नोटिस भेजे और अखबार के संपादकीय पृष्ठ पर छपते व्यंगो में बतौर लेखक मेरा नाम अंदर के पन्ने से उठकर कवर पेज पर बाक्स न्यूज में पढ़ा जाये. पर मेरी तमाम कोशिशो के बाद भी मेरी पत्नी के सिवाय कोई अब तक मुझसे खफा ही नही हुआ. और पत्नी से तो मैं सारे मुकदमें पहले ही हारा हुआ हूं. पुराने समय में साले सालियो की तमाम सावधानियो के बाद भी जीजा और फूफा वगैरह की मानहानि हर वैवाहिक आयोजन का एक अनिवार्य हिस्सा होता था. मामला घरेलू होने के कारण मानहानि के मुकदमें के बदले रूठने, और मनाने का सिलसिला चलता था. किसकी शादी में कौन से जीजा कैसे रूठे और कैसे माने थे यह चर्चा का विषय रहता था.
लोक जीवन में देख लेने की धमकी,धौंस जमाकर निकल लेना आदि मानहानि के मुकदमें से बचने के सरल उपाय हैं. सामान्यतः जब यह लगभग तय हो कि मानहानि के मुकदमें में सामने वाला कोर्ट ही नही आयेगा तो उसे देख लेने की धमकी देकर छोड़ दिया जाता है. देख लेने की धमकी से बेवजह उलझ रहे दोनो पक्ष अपनी अपनी इज्जत समेट कर पतली गली से निकल लेने का एक रास्ता पा जाते हैं. देख लेने की धमकी कुछ कुछ लोक अदालत के समझौते सा व्यवहार करती है. इसी तरह जब खुद की औकात ही किसी अपने की औकात पर टिकी हो जैसे आपका कोई नातेदार थानेदार हो, बड़ा अफसर हो या मंत्री वंत्री हो, विपक्ष का कद्दावर नेता हो तो भले ही आपका स्वयं का कुछ मान न हो पर आप अपना सम्मान अपने उस महान रिश्तेदार के मान से जोड़ सकते हैं और सड़क पर गलत ड्राइविंग या गलत पार्किंग करते पाये जाने पर, बिना रिजर्वेशन आक्यूपाइड अनआथराइज्ड बर्थ पर लेटे लेटे, किसी शो रूम में मोलभाव करते हुये बेझिझक अपनी रिलेशन शिप को जताते हुये, धौंस जमाने के यत्न कर सकते हैं. धौंस जम गई और आपका काम निकल गया तो बढ़िया. वरना आप जो हैं वह तो हैं ही. तुलसी बाबा बहुत पहले चित्रकूट के घाट पर गहन चिंतन मनन के बाद लिख गये हैं ” लाभ हानि जीवन मरण यश अपयश विधि हाथ “. तुलसी की एक एक चौपाई की व्याख्या में, बड़े बड़े शोध ग्रंथ लिखे जा चुके हैं. कथित विद्वानो ने डाक्टरेट की उपाधियां लेकर यश अर्जित किया है, और इस लायक हुये हैं कि उनकी मानहानि हो सके, वरना तो देश के करोड़ो लोगो का मान है ही कहाँ कि उनकी मानहानि हो . तो जब आपकी भी धौंस न चले, देख लेने की धमकी काम न आवे तो बेशक आप विधाता को अपने मान के अपमान के लिये दोषी ठहरा कर स्वयं खुश रह सकते हैं. तुलसी की चौपाई का स्पष्ट अर्थ है कि यश और अपयश विधि के हाथो में है, फिर भी जाने क्यो लोग मान अपमान की गांठें बाधें अपने जीवन को कठिन बना लेते हैं. देश की अदालत में वैसे ही बहुत सारे केस हैं सुनवाई को. ए सी लगे कमरो के बाद भी कोर्ट को गर्मी की छुट्टियां भी मनानी पड़ती है, इसलिये हमारी विनम्र गुजारिश है कि कम से कम मान हानि के मुकदमें दर्ज करने पर रोक लगा दी जाये अध्ययन किया जाये कि क्या इसकी जगह अपनी ऐंठ में जी रहे नेता धमकी, धौंस, बयान वगैरह से काम चला सकते हैं ?
© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर
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