श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. 1982 से आप डाक विभाग में कार्यरत हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत है श्री संतोष नेमा जी का एक भावप्रवण रचना “वापिस अपने घर चले…. ”। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 39 ☆
☆ वापिस अपने घर चले .... ☆
मजदूरों पर दे रहे, नेता रोज बयान
सुनते सुनते पक गए, मजदूरों के कान
पाँवों में छाले पड़े, गया हाथ से काम
वापिस अपने घर चले, लेकर दर्द तमाम
रोटी छूटी हाथ से, छूटा सकल जहान
भूख गरीबी चीख कर, चल दी देकर जान
मजदूरों की आत्मा, करती आज सवाल
किया किसी ने कुछ नहीं, उनके जीवन काल
कहते आह गरीब की, छोड़े बहुत प्रभाव
संभव हो तो कीजिये, उनका दूर अभाव
खाने के लाले पड़े, जीना हुआ मुहाल
रोजी रोटी भी गई, हुए तंग बदहाल
संकट नहीं दरिद्र सा, नहीं दरिद्र सी पीर
आखिर कोई कहाँ तक, मन में रक्खे धीर
श्रमजीवी लाचार हैं, बेबस हैं मजदूर
उनके हित कुछ कीजिये, साहिब आज जरूर
देखे अब जाते नहीं, इनके यह हालात
करना गर कुछ कीजिये, छोड़ हवाई बात
ऐसीं नीति बनाइये, मिले हाथ को काम
सब के हिय “संतोष”हो, कहीं न हों बे-काम
© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
सर्वाधिकार सुरक्षित
आलोकनगर, जबलपुर (म. प्र.)
मो 9300101799
बहुत सुन्दर रचना