श्री संजय भारद्वाज 

(“साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच “ के  लेखक  श्री संजय भारद्वाज जी – एक गंभीर व्यक्तित्व । जितना गहन अध्ययन उतना ही  गंभीर लेखन।  शब्दशिल्प इतना अद्भुत कि उनका पठन ही शब्दों – वाक्यों का आत्मसात हो जाना है।साहित्य उतना ही गंभीर है जितना उनका चिंतन और उतना ही उनका स्वभाव। संभवतः ये सभी शब्द आपस में संयोग रखते हैं  और जीवन के अनुभव हमारे व्यक्तित्व पर अमिट छाप छोड़ जाते हैं।

श्री संजय जी के ही शब्दों में ” ‘संजय उवाच’ विभिन्न विषयों पर चिंतनात्मक (दार्शनिक शब्द बहुत ऊँचा हो जाएगा) टिप्पणियाँ  हैं। ईश्वर की अनुकम्पा से आपको  पाठकों का  आशातीत  प्रतिसाद मिला है।”

हम  प्रति रविवार उनके साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते रहेंगे। आज प्रस्तुत है  इस शृंखला की अगली  कड़ी । ऐसे ही साप्ताहिक स्तंभों  के माध्यम से  हम आप तक उत्कृष्ट साहित्य पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – संजय उवाच # सन्मति ☆

यात्रा पर हूँ। एक भिक्षुक भजन गा रहा है, ‘रघुपति राघव राजाराम…..सबको सम्पत्ति दे भगवान।’

संभवतः यह उसका भाषाई अज्ञान है। अज्ञान से विज्ञान पर चलें। विज्ञान कहता है कि सजीवों में वातावरण के साथ अनुकूलन या तालमेल बिठाने की स्वाभाविक क्षमता होती है।

इस क्षमता के चलते स्थूल शरीर का भाव सूक्ष्म तक पहुँचता है। जो वाह्यजगत में उपजता है, उसका प्रतिबिंब अंतर्जगत में दिखता है।

आज वाह्यजगत भौतिकता को ‘त्वमेव माता, च पिता त्वमेव’ मानने की मुनादी कर चुका। संभव है कि इसके साथ मानसिक अनुकूलन बिठाने की जुगत में अंतर्जगत ने ‘सन्मति’ को ‘सम्पत्ति’ कर दिया हो।

क्या हम सब भी ‘सन्मति’ से ‘सम्पत्ति’ की यात्रा पर नहीं हैं? सन्मति के लोप और सम्पत्ति के लोभ का क्या कोई प्रत्यक्ष या परोक्ष सम्बंध है? इनके अंतर्सम्बंधों की  पड़ताल शोधार्थियों को संभावनाओं के अगणित आयाम दे सकती हैं।

 

#घर में रहें। सुरक्षित रहें।

©  संजय भारद्वाज

मंगलवार 30 मई 2017, प्रात: 8:35 बजे

☆ अध्यक्ष– हिंदी आंदोलन परिवार  सदस्य– हिंदी अध्ययन मंडल, पुणे विश्वविद्यालय  संपादक– हम लोग  पूर्व सदस्य– महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी ☆ ट्रस्टी- जाणीव, ए होम फॉर सीनियर सिटिजन्स 

मोबाइल– 9890122603

[email protected]

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अलका अग्रवाल

जीवन में सन्मति के साथ सम्पत्ति कमाना आवश्यक है,सिर्फ सम्पत्ति कमाना नहीं।