हेमन्त बावनकर
(स्वांतःसुखाय लेखन को नियमित स्वरूप देने के प्रयास में इस स्तम्भ के माध्यम से आपसे संवाद भी कर सकूँगा और रचनाएँ भी साझा करने का प्रयास कर सकूँगा। आज प्रस्तुत है एक कविता “बेरिकेड्स”। अपनी प्रतिक्रिया अवश्य दीजिये और पसंद आये तो मित्रों से शेयर भी कीजियेगा । अच्छा लगेगा ।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – अभिव्यक्ति # 18 ☆
☆ बेरिकेड्स ☆
जिंदगी की सड़क पर
खड़े हैं कई बेरिकेड्स
दोनों ओर खड़े हैं तजुर्बेकार
वरिष्ठ पहरेदार
करने सीमित नियति
सीमित जीवन की गति
कभी कभी तोड़ देती हैं
जिंदगी की गाडियाँ
बेरिकेड्स और सिगनल्स
भावावेश या उन्माद में
कभी कभी कोई उछाल देता है
संवेदनहीनता के पत्थर
भीड़तंत्र में से
बिगाड़ देता है अहिंसक माहौल
तब होता है – शक्तिप्रयोग
नियम मानने वाले से
मनवाने वाला बड़ा होता है
अक्सर प्रशासक विजयी होता है
आखिर क्यों खड़े कर दिये हमने
इतने सारे बेरिकेड्स
जाति, धर्म, संप्रदाय संवाद के
ऊंच, नीच और वाद के
कुछ बेरिकेड्स खड़े किए थे
अपने मन में हमने
कुछ खड़े कर दिये
तुमने और हितसाधकों नें
घृणा और कट्टरता के
अक्सर
हम बन जाते हैं मोहरा
कटवाते रह जाते हैं चालान
आजीवन नकारात्मकता के
काश!
तुम हटा पाते
वे सारे बेरिकेड्स
तो देख सकते
बेरिकेड्स के उस पार
वसुधैव कुटुंबकम पर आधारित
एक वैश्विक ग्राम
मानवता-सौहार्द-प्रेम
एक सकारात्मक जीवन
एक नया सवेरा
एक नया सूर्योदय।
© हेमन्त बावनकर, पुणे
अपनी सड़कें, अपनी गाड़ियाँ, अपने बेरिकेड्स। शासक हम, शासित हम। व्याधि मनुष्य, औषधि मनुष्य। एक संकल्प का अभाव निरंतर रचता है अनंतकाल का ऊहापोह! …विचार करने को विवश करनेवाली रचना।
बहुत सुन्दर रचना ।
सुंदर,दिल को छूने वाली रचना, बधाई
हेमंत जी, सुन्दर करता है. बधाई !
हेमंत जी सुन्दर कविता है, बधाई!!
Bahut sateek. ?
आप सब का हार्दिक आभार