डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
(अग्रज एवं वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं। आप प्रत्येक बुधवार को डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ “तन्मय साहित्य ” में प्रस्तुत है आपकी एक बाल कविता के रूप में भावप्रवण रचना कष्ट हरो मजदूर के ……। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य # 50 ☆
☆ बाल कविता – कष्ट हरो मजदूर के …… ☆
चंदा मामा दूर के
कष्ट हरो मजदूर के
दया करो इन पर भी
रोटी दे दो इनको चूर के।।
तेरी चांदनी के साथी
नींद खुले में आ जाती
सुबह विदाई में तेरे
मिलकर गाते परभाती,
ये मजूर ना मांगे तुझसे
लड्डू मोतीचूर के
चंदा मामां दूर के
कष्ट हरो मजदूर के।।
पंद्रह दिन तुम काम करो
तो पंद्रह दिन आराम करो
मामा जी इन श्रमिकों पर भी
थोड़ा कुछ तो ध्यान धरो,
भूखे पेट न लगते अच्छे
सपने कोहिनूर के
चंदा मामा दूर के
कष्टहरो मजदूर के।।
सुना, आपके अड्डे हैं
जगह जगह पर गड्ढे हैं
फिर भी शुभ्र चांदनी जैसे
नरम मुलायम गद्दे हैं,
इतनी सुविधाओं में तुम
औ’ फूटे भाग मजूर के
चंदा मामा दूर के
दुक्ख हरो मजदूर के
दया करो इन पर भी
रोटी दे दो इनको चूर के।।
© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’
जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश
मो. 9893266014
अच्छी रचना