डॉ कुन्दन सिंह परिहार

(आपसे यह  साझा करते हुए हमें अत्यंत प्रसन्नता है कि  वरिष्ठतम साहित्यकार आदरणीय  डॉ  कुन्दन सिंह परिहार जी  का साहित्य विशेषकर व्यंग्य  एवं  लघुकथाएं  ई-अभिव्यक्ति  के माध्यम से काफी  पढ़ी  एवं  सराही जाती रही हैं।   हम  प्रति रविवार  उनके साप्ताहिक स्तम्भ – “परिहार जी का साहित्यिक संसार” शीर्षक  के अंतर्गत उनकी चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाते  रहते हैं।  डॉ कुंदन सिंह परिहार जी  की रचनाओं के पात्र  हमें हमारे आसपास ही दिख जाते हैं। कुछ पात्र तो अक्सर हमारे  आसपास या गली मोहल्ले में ही नज़र आ जाते हैं।  उन पात्रों की वाक्पटुता और उनके हावभाव को डॉ परिहार जी उन्हीं की बोलचाल  की भाषा का प्रयोग करते हुए अपना साहित्यिक संसार रच डालते हैं। आज  प्रस्तुत है व्यंग्य  ‘लॉकडाउन में रज्जू भाई का इम्तहान ’। यह सच है कि  प्रत्येक मनुष्य में कोई न कोई विशेषता होती है। कभी मनुष्य  स्वप्रेरणा से अपनी  प्रतिभा निखार लेता है तो कभी उसे प्रेरित करना पड़ता है। ऐसे अतिसुन्दर व्यंग्य के लिए डॉ परिहार जी की  लेखनी को  सादर नमन।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – परिहार जी का साहित्यिक संसार  # 53 ☆

☆ व्यंग्य – लॉकडाउन में रज्जू भाई का इम्तहान ☆

रज्जू भाई लॉकडाउन की वजह से बहुत परेशान हैं इतनी लंबी छुट्टी कभी ली नहीं दफ्तर बहुत प्यारा लगता है बतयाने को बहुत लोग हैं सब तरफ चहल पहल रहती है आज्ञाकारी चपरासी बार बार गुटखा तंबाकू,चाय लाने के लिए दौड़ता रहता है जूनियर लिहाज करते हैं हुकूमत का सुख मिलता है रोज़ जेब में भी थोड़ा बहुत आ जाता है

अब घर में बन्द रज्जू भाई के लिए दिन पहाड़ हो जाते हैं खाने और सोने के अलावा कोई काम नहीं सूझता फालतू से घर में मंडराते हैं बेमतलब फोन करने में समय काटते हैं पहले दफ्तर बंद होने पर दफ्तर के क्लब में शतरंज खेलने बैठ जाते थे सात बजे के बाद घर लौटते थे अब टाइम काटने की समस्या है

अब रज्जू भाई सुबह दस बजे तक घुरकते हुए सोते रहते हैं  उनके आसपास घर के काम चलते रहते हैं, लेकिन उनकी नींद में खलल नहीं पड़ता पत्नी सफाईपसंद है झुँझलाकर कहती है, ‘अरे भाई, कितनी मनहूसियत फैलाते हो दफ्तर बन्द है तो दोपहर तक सोते ही रहोगे क्या?पता नहीं कब ये दफ्तर खुलेंगे और कब यह मनहूसी छँटेगी ‘

रज्जू भाई गुस्से में कहते हैं, ‘उठ कर क्या करेंगे? कौन सा काम करना है?’

जवाब मिलता है, ‘काम क्या करोगे? कोई गुन सीखा होता तो आज काम आता जो कोई हुनर जानते हैं वे कुछ न कुछ कर रहे हैं तुमने फाइल इधर उधर सरकाना ही सीखा है और कुछ आता नहीं इसीलिए अहदी की तरह पड़े रहते हो ‘

रज्जू भाई उठ कर बैठ गये बैठे बैठे कुछ सोचते रहे  पत्नी की बात में दम नज़र आया शाम को कुछ ढूँढ़ खोज में  लग गये शादी से पहले बिगड़ी चीज़ों को सुधारने और ठोक-पीट करने का बड़ा शौक था बाद में दफ्तर में ऐसे रमे कि हर काम के लिए दूसरों पर निर्भर हो गये अब पत्नी की झिड़की सुनकर वे अपने पुराने औज़ार ढूँढ़ने में लग गये थे

रात को देर तक थर्मोकोल की शीट्स लेकर खटपट करते रहे आधी रात तक लगे रहे सबेरे बच्चों ने देखा तो खुश हो गये रज्जू भाई ने बच्चों के खेलने के लिए एक बड़ा सा मॉल बनाया था अलग अलग चीज़ों की दूकानें, सेल्समैन, बाहर खड़े गार्ड और कारों की कतार पत्नी भी खुश हुई बच्चे बोले, ‘पापा, आप तो छुपे रुस्तम निकले ‘

दूसरे दिन रज्जू भाई जल्दी उठकर काम में लग गये गैस का चूल्हा कई दिन से गड़बड़ कर रहा था उसे लेकर पत्नी बड़बड़ाती रहती थी कई बार सुधारने वाले को फोन किया था, लेकिन कोई लॉकडाउन में आने को तैयार नहीं था रज्जू भाई उसे लेकर बैठे और घंटे भर में ठीक करके दे दिया पत्नी ने खुश होकर तालियाँ बजायीं

अगले तीन चार दिन में रज्जू भाई ने अपनी कला के बहुत से नमूने पेश कर दिये धीरे चलते पंखों की स्पीड सुधर गयी और टायलेट का फ्लश ठीक हो गया पुरानी,बदरंग पेटियों को घिसकर उन पर रंग कर दिया गया और उन पर फूलों और नर्तकियों के सुन्दर चित्र बन गये इधर उधर पड़े डबलों (छोटे घड़ों) पर सुन्दर आकृतियाँ बनाकर उन्हें बैठक के कोनों में सजा दिया गया बेटी के पलंग पर बैठ कर पढ़ने के लिए एक लकड़ी की चौकी बन गयी बहुत दिन से चुप पड़ी डोरबेल भी बोलने लगी

यह सिलसिला शुरू हुआ तो चलता ही रहा रज्जू भाई घर की काया पलटने और अपनी काबिलियत सिद्ध करने में लगे रहे अब घर में उनकी इज़्ज़त बढ़ गयी थी और वे भरोसे के आदमी हो गये थे अब पत्नी हर काम में उनकी राय लेने लगी थी

एक दिन पत्नी से सामना हुआ तो रज्जू भाई ने पूछा, ‘आप अब तो हमें नालायक नहीं समझतीं?’

पत्नी हल्के से मुस्कराकर बोली, ‘नहीं, पहले जैसा नहीं अब तो बहुत सुधर गये हो ‘

 

© डॉ कुंदन सिंह परिहार

जबलपुर, मध्य प्रदेश

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Shyam Khaparde

शानदार व्यंग