डॉ  सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

(अग्रज  एवं वरिष्ठ साहित्यकार  डॉ. सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’ जी  जीवन से जुड़ी घटनाओं और स्मृतियों को इतनी सहजता से  लिख देते हैं कि ऐसा लगता ही नहीं है कि हम उनका साहित्य पढ़ रहे हैं। अपितु यह लगता है कि सब कुछ चलचित्र की भांति देख सुन रहे हैं।  आप प्रत्येक बुधवार को डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’जी की रचनाएँ पढ़ सकेंगे। आज के साप्ताहिक स्तम्भ  “तन्मय साहित्य ”  में  प्रस्तुत है इस सदी की त्रासदी को बयां करती  भावप्रवण रचना ये सदी….. । )

☆  साप्ताहिक स्तम्भ – तन्मय साहित्य  # 51 ☆

☆ ये सदी….. ☆  

चुप्पियों को ओढ़

आई ये सदी

सबको रुलाने।

 

पैर पूजे थे हमीं ने

देहरी दीपक जलाए

और हर्षित हो सभी ने

सुखद मंगल गीत गाए,

उम्मीदें थी अब खुलेंगे

द्वार सब जाने अजाने।

चुप्पियों को ओढ़…….।।

 

गांव घर सारे नगर के

पथिक बेचारे डगर के

घाव पावों के पसीजे

अश्रु छलके दोपहर के,

भूख इस तट उधर संशय

है न कोई तय ठिकाने।

चुप्पियों को ओढ़…….।।

 

तुम अदृश्या, सर्वव्यापी

कोप से यह सृष्टि कांपी

ईद, दिवाली नहीं

कैसे मनेगा पर्व राखी,

क्रुध्द हो किस बात से

अवरुद्ध है सारी उड़ाने।

चुप्पियों को ओढ़…….।।

 

जोश यौवन का लिए तुम

उम्र केवल बीस की है

हे सदी! है नजर तुम पर

वक्त खबर नवीस की है,

अंत में होगी विकल तब

कौन से होंगे बहाने

चुप्पियों को ओढ़…….।।

 

© डॉ सुरेश कुशवाहा ‘तन्मय’

जबलपुर/भोपाल, मध्यप्रदेश

मो. 9893266014

image_print
0 0 votes
Article Rating

Please share your Post !

Shares
Subscribe
Notify of
guest

0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments