श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश”
(सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी का हिन्दी बाल -साहित्य एवं हिन्दी साहित्य की अन्य विधाओं में विशिष्ट योगदान हैं। साप्ताहिक स्तम्भ “श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं ” के अंतर्गत उनकी मानवीय दृष्टिकोण से परिपूर्ण लघुकथाएं आप प्रत्येक गुरुवार को पढ़ सकते हैं। आज प्रस्तुत है उनकी एक विचारणीय लघुकथा “थोथा चना ”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – श्री ओमप्रकाश जी की लघुकथाएं # 54 ☆
☆ लघुकथा – थोथा चना ☆
आज वह तीसरे दिन भी खड़ा हो कर वही राग अलापने लगा “सर! मेरे पास एक पाण्डुलिपि है जिस में ऐसी ऐसी विधियां है जिस से छात्र एक दिन में गणित, तीन दिन में हिन्दी के शब्द और चार दिन में छात्र फर्राटें से अंग्रेजी बोलना सीख जाए. उसे किसी ग्रामर की आवश्यकता नहीं पड़ेगी”
उस का यही रटारटाया वाक्य सुन कर गणित का प्रशिक्षण ले रहे शिक्षकबोर हो गए थे.
साहब उस की मंशा समझ गए, “आप पाण्डुलिपि यहां ले आना. अगर, अच्छी लगी तो मेरे पहचान के प्रकाशक से छपवा दूंगा.”
“सर! कोरा आश्वासन तो नहीं है ना?” उस ने पुनः पूछा.
“आप ले आना उस के बाद देखेंगे.” कहते हुए साहब निकल गए.
मगर, मास्टर ट्रेनर को उस की बात अखर गई. वे बोले” साथियों आज हम एक हासिल का घटाना सीखेंगे. देखते हैं कि कौन बच्चों को कैसे सवाल कराता है” यह कहते हुए मास्टर ट्रेनर ने उसी शिक्षक को उठा दिया.
वह आया. उस ने घटाव किया. देख कर सब हंस पड़े.
“क्यों भाई ! कोई गलती है क्या ?” उस ने हंसते हुए सदन से पूछा.
“कुछ नहीं” एक मनमौजी शिक्षक ने कहा “यदि आप दुकानदार होते तो सभी ग्राहकों को 90 रूपए में से 12 रूपए घटा कर 88 रूपए वापस कर देते.”
“क्या?” वह शिक्षक अभी मनमौजी शिक्षक की बात समझ नहीं पाया था.
तभी तीसरा शिक्षक बड़बड़ाया, “थोथा चना………….”
सुन कर सदन में हंसी के फव्वारे छूट गए.
चले?”
“हाँ साहब ! मैं उन्हें तड़फता हुआ नही देख सकता था.”
“अच्छा. अब दोनों तड़फ़ना. एक बाहर और एक अन्दर.”
मजेदार