डॉ निधि जैन 

डॉ निधि जैन जी  भारती विद्यापीठ,अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पुणे में सहायक प्रोफेसर हैं। आपने शिक्षण को अपना व्यवसाय चुना किन्तु, एक साहित्यकार बनना एक स्वप्न था। आपकी प्रथम पुस्तक कुछ लम्हे  आपकी इसी अभिरुचि की एक परिणीति है। आपका परिवार, व्यवसाय (अभियांत्रिक विज्ञान में शिक्षण) और साहित्य के मध्य संयोजन अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है  आपकी एक भावप्रवण कविता  “घरोंदा”।)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆निधि की कलम से # 13 ☆ 

☆ घरोंदा  ☆

 

मैंने एक घरोंदा बनाया था,

यादों की मिट्टी से उसे खड़ा कर पाया था।

 

सपनों के पानी से उसे सींचा था,

लम्हों की मिट्टी से उसे बनाया था,

सब की नज़रों से उसे बचाया था,

एक और आशियाना बनाया था,

उसके कमरे में मेरा एक एक सपना छुपाया था।

 

मैंने एक घरोंदा बनाया था,

यादों की मिट्टी से उसे खड़ा कर पाया था।

 

सच्चाईयों के समुद्र ने बहा दिया,

तेज धूप ने उसे जला दिया,

तेज आँधी ने उसे गिरा दिया,

लोगों की ठोकरों ने उसे गिरा दिया,

दुनिया के छल-कपट ने मुझे रुला दिया।

 

मैंने एक घरोंदा बनाया था,

यादों की मिट्टी से उसे खड़ा कर पाया था।

 

उम्र की बढ़ती राह पर घरोंदें की सच्चाई समझ में आई है,

हर कमजोर वस्तु का भविष्य समझ में आया है,

घरोंदा छोड़ मकान का स्वपन सजाया है,

ईट गारे के साथ विश्वास से ठोस बनाया है,

हर नींव के पत्थर को अपने ऊपर विश्वास के काबिल बनाया है।

 

मैंने एक घरोंदा बनाया था,

यादों की मिट्टी से उसे खड़ा कर पाया था।

 

©  डॉ निधि जैन, पुणे

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डॉ भावना शुक्ल

बढ़िया रचना

Shyam Khaparde

अच्छी रचना