श्रीमती सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
(संस्कारधानी जबलपुर की श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’ जी की लघुकथाओं, कविता /गीत का अपना संसार है। । साप्ताहिक स्तम्भ – श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य शृंखला में आज प्रस्तुत हैं एक अतिसुन्दर भावनात्मक एवं प्रेरक लघुकथा “मन के द्वार ”। लॉक डाउन एवं मन के द्वार में अद्भुत सामंजस्य बन पड़ा है। हमारे सामाजिक जीवन के साथ ही साहित्य पर भी इस महामारी एवं लॉक डाउन का प्रभाव स्वाभाविक तौर पर पड़ रहा है। इस सर्वोत्कृष्ट शब्द शिल्प के लिए श्रीमती सिद्धेश्वरी जी को हार्दिक बधाई।)
☆ श्रीमति सिद्धेश्वरी जी का साहित्य # 56 ☆
☆ मन के द्वार ☆
आज सुबह अजय अनमना सा उठा। उसे बार-बार अपने दोस्त वेद प्रकाश की याद आ रही थी। कुछ बातों के चलते दोनों पड़ोसियों में कहा सुनी हो जाने के कारण बातचीत बंद हो गई थी । यहां तक कि बच्चों में भी तालमेल खत्म सा हो गया था। दोनों की पक्की दोस्ती के कारण मोहल्ले वाले उन्हें ‘अभेद’ नाम से पुकारते थे, क्योंकि दोनों ने कभी कोई बात एक दूसरे से छुपा कर नहीं रख रखी थी। इतना गहरा संबंध होने के बाद भी कहते हैं….. नजर लग गई दोस्ती को क्या करें??
वेद प्रकाश की बिटिया को आज लड़के वाले देखने आ रहे थे। वेद और भी परेशान हो रहा था। इस मौके पर उसे अपने दोस्त की सख्त जरूरत और याद आ रही थी। लाकडाउन की वजह से सभी का आना जाना बंद हो गया था। कोई किसी के यहां नहीं आ जा रहे थे। ऐसे में बिटिया की शादी की बात को सुनकर अजय मन ही मन खुश हो गया, और सोचने लगा मेहमान आ जाए…. और मैं अब जल्दी तैयार हो जाता हूं। पत्नी ने भी हंस कर कहा….. मुझे भी ऐसा ही कुछ लग रहा है।
ठीक समय पर मेहमानों की गाड़ी दरवाजे पर आकर रुकी। वेद प्रकाश आवभगत में जुट गया। दालान में आकर सभी बैठे ही थे और बिटिया सज संवर कर चाय लेकर मेहमानों के बीच आ रही थी, ठीक उसी समय अजय सपरिवार मुंह में मास्क लगाए…. आकर दरवाजे पर खड़ा होकर बोला… माफ कीजिएगा यह लॉकडाउन भी बहुत ही परेशान कर रखा है सभी का आना जाना बंद कर दिया है। वरना हमारी बिटिया को क्या??? आप को अकेले-अकेले ले जाना होता। बस लॉकडाउन खुल जाए और हम धूमधाम से बिटिया को विदा करेंगे। इतना सुनना था कि वेद प्रकाश दौड़कर आया और जोर से बोला… लॉक डाउन खुल गया, लाकडाउन खुल गया समझो दोस्त लाकडाउन सदा सदा के लिए खुल गया। बहुत तरसा रहा था। अब नहीं होगा ऐसा कभी लाकडाउन।
कभी ना आए जीवन में ऐसा वक्त की लाकडाउन होना पड़े। दोनों एक दूसरे की बात को समझ मुस्कुरा दिए। मेहमान को लगा शायद विषम परिस्थितियों पर बात हो रही है, परंतु दोनों दोस्त हाथ तो क्या.. गले मिलकर लॉकडाउन को सदा सदा के लिए विदा कर चुके और मन के द्वार खुल चुके थे। बिटिया भी मुस्कराते हुए चाय की प्याली आगे बढ़ाने लगी।
© श्रीमति सिद्धेश्वरी सराफ ‘शीलू’
जबलपुर, मध्य प्रदेश
अच्छी रचना