डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं   “भावना  के दोहे । ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 54 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना  के दोहे  ☆

चीन चले ही जा रहा,

कैसी कुचक्र  चाल।

जीवन में   लेगें नहीं,

कभी  चीन का माल।।

 

छल छंदों के रूप को,

देख लिया है खूब।

मंचों पर होने लगी,

उन्हें देखकर ऊब।।

 

छल छंदों ने रच लिया,

अब तो खूब प्रपंच।

उड़ा रहे खिल्ली सभी,

खेद नहीं है रंच।।

 

फूल अधर पर खिल उठे

बाकर मृदु मुस्कान।

तुझ बिन जीवन कुछ नहीं,

तू ही मेरी जान।।

 

तन मन उपवन हो रहा,

सौरभ है मन प्राण।

कली कली मन की खिली,

मिला पीर को त्राण।।

 

सूरज तेरी आस में,

देख रहे है राह।

अंधकार पसरा बहुत,

ओझल हुई पनाह।।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]
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Shyam Khaparde

अच्छी रचना