सौ. सुजाता काळे
(सौ. सुजाता काळे जी मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगनी से ताल्लुक रखती हैं। उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है सौ. सुजाता काळे जी द्वारा प्राकृतिक पृष्टभूमि में रचित एक अतिसुन्दर भावप्रवण कविता “फिर उग आया हूँ”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 42 ☆
☆ फिर उग आया हूँ ☆
कट गया पर उग आया हूँ,
देख तेरे सहर में फिर आया हूँ ।
रात ही तो बीती थी कटने के बाद
मैं जिंदा हरा भरा दिल लाया हूँ ।
जड़ से उखाड़ दिया, धड़ से गिरा दिया
बाजू कटी है मेरी पर मैं खिल आया हूँ ।
देख तेरे सहर में फिर आया हूँ ।
© सुजाता काळे
7/7/20
पंचगनी, महाराष्ट्र, मोबाईल 9975577684
अच्छी रचना