श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
( ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों / अलंकरणों से पुरस्कृत / अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एक विचारणीय रचना “शेयर का चक्कर* ”। शेयर शब्द ही ऐसा है जिसमें “अर्थ” जुड़ा है। किन्तु, शेयर का कुछ और भी अर्थ है जिसके लिए आपको यह रचना पढ़नी पड़ेगी। । इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन ।
आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएँ # 27☆
☆ शेयर का चक्कर ☆
शेयर बाजार में उथल – पुथल मची ही रहती है । मंदी की मार कब किस को प्रभावित कर देगी ये कोई नहीं कह सकता । फिर भी लोग शेयर खरीदते व बेचते रहते हैं, जिससे शेयर मार्केट का अस्तिव बना हुआ है ।
ये तो था शेयर के धन का चक्कर जिसके फेर में न जाने कितने लोग आबाद व बर्बाद होते रहते हैं । अब एक और शेयर पर भी नजर डाल ही लीजिए, देखिए कितनी तेजी से फेसबुक पर पोस्ट की शेयरिंग होती है । बस पोस्ट में कुछ दम होना चाहिए । जब जनमानस के कल्याण की पोस्ट हो या कुछ विशेष चर्चा हो ; तो शेयर की बाढ़ लग जाती है । और देखते ही देखते पोस्ट वायरल हो जाती है ।
मजे की बात ये है, कि इस शेयर ने चेयर को भी नहीं छोड़ा है । आये दिन चेयर के शेयर उछाल पकड़ ही लेते हैं। जितनी मजबूत चेयर उतने ही उसके दीवाने । बस हिस्सा- बाँट की बात हो तो शेयर के कदम बढ़ ही जाते हैं । चेयर को बचाये रखना कोई मामूली कार्य नहीं होता है । जोर आजमाइश से ही इसके साथ जिया जा सकता है । सभी लोग अपने – अपने पदों को शेयर करने में लगें । ये कार्य कोई जनहित की भावना से नहीं होता, ये तो अपना रुतबा बढ़ाने की चाहत के जोर पकड़ने से शुरू होता है, और हिस्सा – बाँट पर ही पूर्ण होता है ।
पहले तो शेयर करो, का अर्थ अपनी अच्छी व उपयोगी चीजों को बाँटना होता था , पर जब से मीडिया का प्रभाव बढ़ा तब से लोगों ने इसकी अलग ही परिभाषा गढ़ ली है । अब तो कुछ भी शेयर कर देते हैं, बस लाइक और कमेंट मिलते रहना चाहिए । इस दिशा में जन सेवक तो सबसे बड़े शेयर कर्ता सिद्ध हुए वे अपनी सत्ता तक शेयर कर देते हैं ; बस चेयर बची रहे । कर्म की पूजा का महत्व तो घटता ही जा रहा है , अब तो शेयर देव, चेयर देव यही आपस में उलझते हुए इधर से उधर आवागमन कर रहें हैं । नयी जगह नया सम्मान मिलता है, सो अपने जमीर को व जनता के विश्वास को भी शेयर करने से ये नहीं चूकते बस चेयर मजबूती से पकड़े रहते हैं ।
अरे भई इतना तो सोचिए कि, वक्त से बड़ा समीक्षक कोई नहीं होता , ये सबका लेखा जोखा रखता है । अतः सोच समझ कर ही चेयर को शेयर करें, घनचक्कर न बनें ।
© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
माँ नर्मदे नगर, म.न. -12, फेज- 1, बिलहरी, जबलपुर ( म. प्र.) 482020
मो. 7024285788, [email protected]
अच्छी रचना
हार्दिक धन्यवाद
बहुत बढ़िया
हार्दिक धन्यवाद