डॉ भावना शुक्ल

(डॉ भावना शुक्ल जी  (सह संपादक ‘प्राची‘) को जो कुछ साहित्यिक विरासत में मिला है उसे उन्होने मात्र सँजोया ही नहीं अपितु , उस विरासत को गति प्रदान  किया है। हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि माँ सरस्वती का वरद हस्त उन पर ऐसा ही बना रहे। आज प्रस्तुत हैं   “भावना के दोहे। ) 

☆ साप्ताहिक स्तम्भ  # 57 – साहित्य निकुंज ☆

☆ भावना के दोहे ☆

 

हर युग के साहित्य का  ,

अपना समकालीन।

बिन सोचे की रच रहे,

विषय विचाराधीन।।

 

रचती जाती पूतना ,

है षड्यंत्री जाल ।

मनमोहन तो समझते,

उसकी है हर चाल।

 

मन मोहन के रूप की,

लीला अपरम्पार।

वामन प्रभु का रूप धर,

तीनों लोक अपार।।

 

नागिन के हर रूप को,

समझ न पाए श्याम।

पाकर दरस मोहन का,

पहुँची गंगा धाम।।

 

देख रहे हैं हम सभी,

जन जीवन है सून।

कोरोना के काल में,

बदला है कानून।।

 

© डॉ.भावना शुक्ल

सहसंपादक…प्राची

प्रतीक लॉरेल , C 904, नोएडा सेक्टर – 120,  नोएडा (यू.पी )- 201307

मोब  9278720311 ईमेल : [email protected]
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Shyam Khaparde

अच्छी रचना

Dr Kamna tiwari shrivastava

शानदार दोहे