श्री आशीष कुमार
(युवा साहित्यकार श्री आशीष कुमार ने जीवन में साहित्यिक यात्रा के साथ एक लंबी रहस्यमयी यात्रा तय की है। उन्होंने भारतीय दर्शन से परे हिंदू दर्शन, विज्ञान और भौतिक क्षेत्रों से परे सफलता की खोज और उस पर गहन शोध किया है। अब प्रत्येक शनिवार आप पढ़ सकेंगे उनके स्थायी स्तम्भ “आशीष साहित्य”में उनकी पुस्तक पूर्ण विनाशक के महत्वपूर्ण अध्याय। इस कड़ी में आज प्रस्तुत है “असत्य की रात्रि”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – ☆ आशीष साहित्य – #2 ☆
☆ असत्य की रात्रि ☆
भारद्वाज (अर्थ : जिसके पास ताकत है)ऋषि, विश्रवा से इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने उन्हें अपनी बेटी इलाविडा (अर्थ :भूमि से ग्रहण करना) कोपत्नी के रूप में दे दिया था ।इलाविडा से विश्रवा को एक पुत्र हुआ जिसका नाम कुबेर रखा गया। कुबेर का अर्थ है विकृत संरचना/आकृति या राक्षसी या बीमार आकार वाला ।एक अन्य सिद्धांत के अनुसार कुबेर का अर्थ मूल क्रिया ‘कुम्बा’ से लिया जा सकता है, जिसका अर्थ है ‘छुपाएं’ तो कुबेर में कु अर्थ ‘पृथ्वी के अंदर छुपा हुआ’ और ‘वीरा’ का अर्थ नायक है तो कुबेर का अर्थ हुआ पृथ्वी के अंदर छिपे हुए ख़जाने का नायक । कुबेर छिपे हुए धन के भगवान है और अर्द्ध दिव्य यक्षों के राजा हैं । कुबेर को उत्तर दिशा का ‘दिकपाल’ भी माना जाता है (दिक का अर्थ है ‘दिशा’ और पाल का अर्थ है ‘पोषण’) अर्थात उत्तर दिशा का पालन करने वाला । कुछ लोग कुबेर को लोकपाल भी मानते है (लोक अर्थ ‘दुनिया’ और पाल का अर्थ है ‘पोषण’ तो कुबेर हुए दुनिया का पोषण करने वाले) । कई ग्रंथों ने कुबेर को कई अर्ध-दैवीय प्रजातियों के अधिग्रहण के रूप में और दुनिया के खजानों के मालिक के रूप में उजागर किया है । कुबेर को अक्सर एक मोटे शरीर के साथ चित्रित किया जाता है, जो गहनों से सजे हुए होते हैं, हाथों में धन-बर्तन और एक गदा लिए हुए होते हैं, कुबेर ही लंका के मूल शासक थे । भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए कुबेर ने हिमालय पर्वत पर तप किया। तप के अंतराल में शिव तथा पार्वती दिखायी पड़े। कुबेर ने अत्यंत सात्त्विक भाव से पार्वती की ओर बायें नेत्र से देखा। पार्वती के दिव्य तेज से वह नेत्र भस्म होकर पीला पड़ गया। कुबेर वहाँ से उठकर दूसरे स्थान पर चले गये। वह घोर तप या तो भगवान शिव ने किया था या फिर कुबेर ने किया, अन्य कोई भी देवता उसे पूर्ण रूप से संपन्न नहीं कर पाया था। कुबेर से प्रसन्न होकर शिव ने कहा-‘तुमने मुझे तपस्या से जीत लिया है। तुम्हारा एक नेत्र पार्वती के तेज से नष्ट हो गया, अत: तुम एकाक्षीपिंगल कहलाओंगे। देवी भद्रा (अर्थ : कल्याणकारिणी शक्ति) ,हिन्दू धर्म में भद्रा शिकार की देवी है कुबेर की पत्नी है ।
यक्ष का शाब्दिक अर्थ होता है ‘जादू की शक्ति’, येप्रकृति-आत्माओं की एक श्रेणी है आमतौर पर उदार, जो पृथ्वी और वृक्ष की जड़ों में छिपे प्राकृतिक खजाने की देखभाल करते हैं । दूसरी ओर, यक्षों को वन और पहाड़ों से जुड़े अपमानजनक, प्रकृति का सन्देशवाहक भी माना जाता है । लेकिन यक्ष का एक नकारात्मक संस्करण भी है, जो एक प्रकार के भूतहैं और जो जंगलों मेंशिकार करते हैं ।ये वे यक्ष हैंजो राक्षसों के समान जंगलों से गुजरने वाले यात्रियों को भस्म करके खा लेते हैं ।
स्वर्ग के निवासियों के तीन वर्ग हैं :
- देवता (वातावरण और प्राकृतिक चक्र के देव)
- गणदेव (देवताओं की विभिन्न श्रेणियाँ)
- उपदेव (देवताओंकेसहायक देव)
इंद्र, सूर्य, सोम, वायु आदि देवता हैं ।
गणदेव में हैं :
12 आदित्य (12 महीनो के 12 सूरज देवता),
10 विश्वदेव (10 सार्वभौमिक सिद्धांतो के देव),
8 वासु (8 प्रकार के निवास स्थानों के देव),
36 देवी,
64 अभास्वर (64 प्रकार की चमक के देव),
49 अनिल (हवाओं की देवताओं),
220 महाराजिका (220 प्रकार की रियासतो के देव),
12 साध्य (12 सिद्धि प्राप्ति के तरीकों के देव) और
11 रुद्र (11 विनाश के देव)
उपदेवों के 10 उपभाग हैं :
विद्याधर (ज्ञान के धारक),
अप्सरा (सार),
यक्ष,
राक्षस,
गंधर्व (गंध के मालिक),
किन्नर (आंशिक आदमी एवं आंशिक जानवर या कुछ और),
पिशाच (कच्चा माँस खाने वाले),
गुह्यक (रहस्यो को छिपाकर रखने वाले),
सिद्ध (महान ज्ञान रखने वाले) और
भूत (पृथ्वी से जन्मी भटकती आत्माएँ)
© आशीष कुमार