श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ 

(प्रतिष्ठित साहित्यकार श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’ जी के साप्ताहिक स्तम्भ – “विवेक साहित्य ”  में हम श्री विवेक जी की चुनिन्दा रचनाएँ आप तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं। श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र जी, अतिरिक्त मुख्यअभियंता सिविल  (म प्र पूर्व क्षेत्र विद्युत् वितरण कंपनी , जबलपुर ) में कार्यरत हैं। तकनीकी पृष्ठभूमि के साथ ही उन्हें साहित्यिक अभिरुचि विरासत में मिली है।  उनका कार्यालय, जीवन एवं साहित्य में अद्भुत सामंजस्य अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है श्री विवेक जी का  सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार डॉ ज्ञान चतुर्वेदी जी के प्रति उनकी मनोभावनाओं को प्रदर्शित करता हुआ एक आलेख  डा. ज्ञान चतुर्वेदी… व्यंग्य से मन की सर्जरी)

☆ साप्ताहिक स्तम्भ – विवेक सहित्य # 69 ☆

☆ डा. ज्ञान चतुर्वेदी… व्यंग्य से मन की सर्जरी ☆

दशमलव ६६ सेकेंड में गूगल ने डा ज्ञान चतुर्वेदी सर्च करने पर दो लाख से ज्यादा परिणाम वेब पेजेज, यू ट्यूब, फेसबुक पर ढूँढ निकाले. वे युग के सतत सक्रिय चुनिंदा व्यग्यकारों में से हैं, जो नई पीढ़ी के व्यंग्यकारो को मार्गदर्शन करते, उनका हाथ पकड़ रास्ता बतलाते दिखते हैं.

रचनाधर्मिता मन की अनुभूतियों को अभिव्यक्त कर सकने की दक्षता होती है. कविता, लेख, कहानी, उपन्यास या व्यंग्य कोई भी विधा अभिव्यक्ति का माध्यम बन सकती है. पिछली शताब्दि के उत्तरार्ध तक अधिकांश  साहित्य लेखन शिक्षाविदों, विश्वविद्यालयों, पत्रकारिता, से जुड़े लोगों तक सीमित था. किन्तु, पिछले कुछ दशको में डाक्टर्स, इंजीनियर्स, बैंक कर्मी, पोलिस कर्मी भी सफल उच्च स्तरीय लेखन में सुप्रतिष्ठित हुये हैं.

डा ज्ञान चतुर्वेदी व्यवसायिक योग्यता में एक अत्यंत सफल चिकित्सक हैं. उन्हें उनकी व्यंग्य लेखन की उपलब्धियों के लिये पद्मश्री का सम्मान प्रदान किया गया है. यह हम व्यंग्य कर्मियों के लिये एक लैंडमार्क है. मैंने अपने छात्र जीवन से ही जिन कुछ चुनिंदा व्यंग्यकारो को पढ़ा है उनमें  डा ज्ञान चतुर्वेदी का नाम प्रमुखता से शामिल है, अनेक बार किसी बुक स्टाल पर पत्रिकाओ के पन्ने अलटते पलटते केवल उनका व्यंग्य देखकर ही मैंने पत्रिका खरीदी है.  एक चिकित्सक होते हुये भी उनके व्यंग्य लेखक के रूप में सुप्रतिष्ठित होने से मैं भीतर तक प्रभावित हूँ. यही कारण रहा कि मैंने साग्रह उनसे अपने नये व्यंग्य संग्रह “समस्या का पंजीकरण” की भूमिका लिखवाई है.

वे अपनी कलम से लोगों के मन की सर्जरी में निष्णात हैं. व्यंग्य उपन्यासों के माध्यम से व्यंग्य साहित्य में उन्होंने उनकी विशिष्ट जगह बनाई है.

अपनी अशेष मंगलकामनायें उनके उज्वल भविष्य के लिये अभिव्यक्त करता हूं. डा ज्ञान चतुर्वेदी की हिन्दी व्यंग्य  यात्रा में यह विशेषांक एक छोटा सा पड़ाव ही है, वे उस यात्रा के राही हैं,  जिनसे व्यंग्य जगत के हम सह यात्रियो को अभी बहुत कुछ पाने की आकाँक्षा है.

 

© विवेक रंजन श्रीवास्तव, जबलपुर

ए १, शिला कुंज, नयागांव,जबलपुर ४८२००८

मो ७०००३७५७९८

≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय  ≈

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