श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
( ई-अभिव्यक्ति में संस्कारधानी की सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’ जी द्वारा “व्यंग्य से सीखें और सिखाएं” शीर्षक से साप्ताहिक स्तम्भ प्रारम्भ करने के लिए हार्दिक आभार। आप अविचल प्रभा मासिक ई पत्रिका की प्रधान सम्पादक हैं। कई साहित्यिक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर सुशोभित हैं तथा कई पुरस्कारों / अलंकरणों से पुरस्कृत / अलंकृत हैं। आपके साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं में आज प्रस्तुत है एक अतिसुन्दर रचना “मख्खी नहीं मधुमख्खी बने”। इस सार्थक रचना के लिए श्रीमती छाया सक्सेना जी की लेखनी को सादर नमन ।
आप प्रत्येक गुरुवार को श्रीमती छाया सक्सेना जी की रचना को आत्मसात कर सकेंगे।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ – व्यंग्य से सीखें और सिखाएं # 32 – मख्खी नहीं मधुमख्खी बने ☆
जन्मोत्सव की पार्टी चल रही थी, पर उनकी निगाहें किसी विशेष को ढूंढ रहीं थीं, कि तभी वहाँ एक पत्रिका के संपादक आये और उनके चरण स्पर्श कर कहने लगे – चाचा जी जन्मदिवस की शुभकामनाएँ …..
“ओजरी भर विभा, वर्ष भर हर्ष मन,
शांति,सुख, कल्पना,आस्था, आचमन।
जन्मदिन की पुनः असीम शुभकामनाएँ…
उन्होंने कहा, “अब अच्छा लगा, कितनी भी खुशी मिले, उपहार मिलें सब अधूरे लगते हैं, जब तक बच्चों द्वारा खुशी न मिले।
बहुत बढ़िया पंक्तियाँ…… चाचा जी ने सिर पर हाथ रखते हुए शुभाशीष दिया।
इसी पार्टी में प्रमोशन सबंधी विवाद की चर्चा भी चल रही थी। जहाँ दो गुट आपस में भिड़े हुए थे।
चर्चा को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा, जिस तरह माह में दो पक्ष होते हैं, सिक्के में दो पहलू होते हैं, विचारों में दो विचार होते हैं,मतों में दो मत होते हैं, ठीक वैसे ही जब कोई शुभ आयोजन अच्छे से निपटता हुआ दिखे तो अवश्य ही कहीं न कहीं से अशुभ रूपी विघ्न आ धमकता है। पर हम तो ठहरे मोटिवेशनल लेखक सो ये तय है कि बस सकारात्मक पहलू ही देखना है, चाहे स्थिति कुछ भी हो।
तभी उनके संपादक भतीजे ने चुटकी लेते हुए कहा –
यहाँ एक बात और याद आती है कि अक्सर विवाद के बाद ही फ़िल्म रिकार्ड तोड़ कमाई करती है, अब ये उत्सव भी करेगा, बस सही योजना बने, जिससे नियमित कार्य शुरू हो और इस जन्मोत्सव के प्रायोजक का खर्चा – पानी भी निकल सके।
प्रायोजक महोदय ने गहरी साँस भरते हुए, गंभीर स्वर में कहा ” समयाभाव के कारण जितना कार्य किया है, वही रूप रेखा बना दी है, अब आप लोग सुझाएँ। आप तो गुरुदेव हैं, सबसे ज्यादा समझदार होना चाहिए आपको।”
उनका एक सहयोगी कहने लगा “चरणों तक पहुँच गया हूँ, माफी माँगने,अब क्या करूँ ?”
एक सदस्य रोनी सी सूरत लिए कहने लगा ” बेटा बन जाइये, बेटे की हर ग़लती माफ़ रहती है।”
पागलपन की हद हो गई मक्खी नहीं मधुमक्खी बनिए,अभी भी समय है सुधर जाएँ संपादक महोदय ने कहा।
तभी उन्होंने ने ज्ञान बाँट दिया समस्याओं से लड़ना चाहिए, शिखर पर पहुँचने में बहुत ठोकरें लगेंगी पर हार नहीं मानना चाहिए, संपादक को तो बिल्कुल नहीं पत्रिका सही थी, है और रहेगी। शुरुआत में तो सबको आलोचना सहनी पड़ती है बाद में प्रतिष्ठित होते ही जो लिखो वही सत्य बन जाता है, बस उस मुकाम तक पहुँचने की देर होती है।
वहाँ उपस्थित एक अधिकारी ने कहा “प्रभु आप तो साक्षात परमहंस की श्रेणी में आ गये, आप अवतारी हैं, कोई साधारण मानव नहीं ,अब कोई दुविधा नहीं जैसा चाहें वैसा निर्णय लें मैं तो सदैव अनुगामी हूँ।
चलो भाई इस निरर्थक वार्तालाप को विराम दें अब लंच का समय हो गया है, जन्मोत्सव का आनन्द उठाते हुए जम के रसगुल्ले और केक खाते हैं, पनीर टिक्का का नाम सुनते ही पानी आ जाता है, सभी हहहहहहह……. करते हुए खाने की टेबल की ओर चल दिए।
© श्रीमती छाया सक्सेना ‘प्रभु’
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≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈