सौ. सुजाता काळे
(सौ. सुजाता काळे जी मराठी एवं हिन्दी की काव्य एवं गद्य विधा की सशक्त हस्ताक्षर हैं। वे महाराष्ट्र के प्रसिद्ध पर्यटन स्थल कोहरे के आँचल – पंचगणी से ताल्लुक रखती हैं। उनके साहित्य में मानवीय संवेदनाओं के साथ प्रकृतिक सौन्दर्य की छवि स्पष्ट दिखाई देती है। आज प्रस्तुत है सौ. सुजाता काळे जी द्वारा प्राकृतिक पृष्टभूमि में रचित एक अतिसुन्दर भावप्रवण कविता “गणेश पठवनि”। )
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆ कोहरे के आँचल से # 45 ☆
☆ गणेश पठवनि ☆
आज पठवनि गणेश तुम्हारी।
मम हृदय लगे हर क्षण भारी।।
जै भी पूजा जैसे भी कीन्हा ।
तुम हर भूल को उदर में लीन्हा।।
हौ कछु जानत नाही कोई विधि।
बस तुम्हारी भक्ति करी लिधी।।
तुमको अति प्रिय लागत दूर्वादल।
मूषक संग मोदक, फूल कमल।।
मैं बस रजकण तुम्हारे पाँवन की।
नैनन में लगी लड़ी आँसुवन की।।
अकुलाये मन का हर कोना।
सदन रिक्त करी जाये क्यों दीना।।
कृपा दृष्टि रखो बुद्धि के नाथा।
अब जायिके आओ फिरी दाता।।
© सुजाता काळे
1/9/20
पंचगणी, महाराष्ट्र, मोबाईल 9975577684
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈