डॉ निधि जैन
( डॉ निधि जैन जी भारती विद्यापीठ,अभियांत्रिकी महाविद्यालय, पुणे में सहायक प्रोफेसर हैं। आपने शिक्षण को अपना व्यवसाय चुना किन्तु, एक साहित्यकार बनना एक स्वप्न था। आपकी प्रथम पुस्तक कुछ लम्हे आपकी इसी अभिरुचि की एक परिणीति है। आपका परिवार, व्यवसाय (अभियांत्रिक विज्ञान में शिक्षण) और साहित्य के मध्य संयोजन अनुकरणीय है। आज प्रस्तुत है आपकी एक भावप्रवण कविता “तुम सा मैं बन जाऊँ”।)
☆ साप्ताहिक स्तम्भ ☆निधि की कलम से # 19 ☆
☆ तुम सा मैं बन जाऊँ ☆
हे भास्कर, हे रवि, तुम सा मैं बन जाऊँ,
तुम सा मैं चमक उठूं, हे सूरज तुम सा मैं बन जाऊँ।
अंधकार के कितने बादल आये,
नीर की कितनी बारिश हो जाये,
रात की कितनी कलिमा छा जाये,
हे भास्कर, हे रवि, सारे अंधकार सारा नीर थम जाये,
तुम सा मैं चमक उँठू, हे सूरज तुम सा मैं बन जाऊँ।
हर दिन चन्द्रमा तारे, काली रात को दोस्त बनाकर सबका मन लुभाते हैं,
रात की कलिमा सब प्रेमियों का दिल लुभाते हैं,
ये रात झूठी हो जाये, सूरज की किरणें छूने की आस लगाये,
तू एक उजाला, तू एक सूरज सारे जगत को रोशन करता,
तू असीम, तू अनन्त, तू आरुष का साथी ।
हे भास्कर, हे रवि, तुम सा मैं बन जाऊँ,
तुम सा मैं चमक उँठू, हे सूरज तुम सा मैं बन जाऊँ।
© डॉ निधि जैन, पुणे
≈ ब्लॉग संपादक – श्री हेमन्त बावनकर/सम्पादक मंडल (हिन्दी) – श्री विवेक रंजन श्रीवास्तव ‘विनम्र’/श्री जय प्रकाश पाण्डेय ≈
Woow, beautiful lines..