श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे 

 

(श्रीमती रंजना मधुकरराव लसणे जी हमारी पीढ़ी की वरिष्ठ मराठी साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना  एक अत्यंत संवेदनशील शिक्षिका एवं साहित्यकार हैं।  सुश्री रंजना जी का साहित्य जमीन से  जुड़ा है  एवं समाज में एक सकारात्मक संदेश देता है।  निश्चित ही उनके साहित्य  की अपनी  एक अलग पहचान है। आज  प्रस्तुत है आपकी हिंदी रचना   “आँगन की तेरी मैं गुड़िया बनूँगी”।  कन्या / भ्रूण हत्या  जैसे विषय पर आपके इस अभिनव प्रयास के लिए  हार्दिकअभिनन्दन। )

☆ रंजना जी का साहित्य # 52 ☆

☆ आँगन की तेरी मैं गुड़िया बनूँगी ☆

 

आँगन की तेरी मैं गुड़िया बनूँगी

खुशियों से तेरा मैं जीवन भरूंगी।।धृ।।

 

नही हूँ जो बेटा कहाँ कम  हूँ मै भी।

माँ ऊँची उड़ाने भर लूँगी  मैं भी।

तेरा सर हमेशा मैं उन्नत करूंगी।।1।।

आँगन की तेरी मैं गुड़िया बनूँगी  ……

 

आने दो जीवन की बगिया में मुझको।

खुशबू की सौगात दे दूँगी सबको।

तोड़ो ना मैय्या मैं अनखिल रहूँगी।।2।।

आँगन की तेरी मैं गुड़िया बनूँगी  ……

 

मानो ना मुझको तुम तो परायी।

मैय्या को अपनी कहाँ भूल पायी।

दोनो घरों की मैं छाया बनूँगी ।।3।।

आँगन की तेरी मैं गुड़िया बनूँगी  ……

 

©  रंजना मधुकर लसणे

आखाडा बाळापूर, जिल्हा हिंगोली

9960128105

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