श्री संतोष नेमा “संतोष”
(आदरणीय श्री संतोष नेमा जी कवितायें, व्यंग्य, गजल, दोहे, मुक्तक आदि विधाओं के सशक्त हस्ताक्षर हैं. धार्मिक एवं सामाजिक संस्कार आपको विरासत में मिले हैं. आपके पिताजी स्वर्गीय देवी चरण नेमा जी ने कई भजन और आरतियाँ लिखीं थीं, जिनका प्रकाशन भी हुआ है. 1982 से आप डाक विभाग में कार्यरत हैं. आपकी रचनाएँ राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में लगातार प्रकाशित होती रहती हैं। आप कई सम्मानों / पुरस्कारों से सम्मानित/अलंकृत हैं. “साप्ताहिक स्तम्भ – इंद्रधनुष” की अगली कड़ी में प्रस्तुत हैं “संतोष के दोहे”। आप श्री संतोष नेमा जी की रचनाएँ प्रत्येक शुक्रवार आत्मसात कर सकते हैं।)
☆ साहित्यिक स्तम्भ – इंद्रधनुष # 53☆
☆ संतोष के दोहे ☆
चिंतन पहले सब करें, बाद करें सब काम
तभी सफलता भी मिले, कभी न हों नाकाम
झूम उठा मन देख कर, निरखि नियति का रूप
उत्सव सा मौसम लगे, नित नव रंग स्वरूप
गली बगीचों में दिखें, नव युगलों की भीर
अब विस्मय क्या कीजिये, रखिये बस मन धीर
बिना चाह के हमें खुद, मिलता मान यथेष्ट
कर्मों की खातिर सदा, रहिये तनिक सचेष्ट
राह ताकती कौमुदी, पावस पूनम रात
पाकर मधु वो खिल उठी, पुलकित सब जज्बात
© संतोष कुमार नेमा “संतोष”
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